किसी की योग्यता को नापने के कई पैमाने हो सकते हैं। किसी नेता की योग्यता को नापने का एक ही पैमाना होता है चुनाव में जीत हासिल करना। अगर पार्टी ने चुनाव लड़ने के लिए टिकट दिया है और वह चुनाव जीतकर दिखा देता है, वह काबिल माना जाता है। कहा जाता है कि जो जीता वही सिंकंदर, अब यह भी कहा जाता है कि जो जीता वही काबिल है।
इस बार के लोकसभा चुनाव में भाजपा व कांग्रेस नेताओं को लोकसभा चुनाव जीतने का लक्ष्य दिया गया था। कुछ लोगों को चुनाव जीतने का लक्ष्य दिया गया था और कुछ लोगों को पार्टी के प्रत्याशियों को जिताने का लक्ष्य दिया गया था।११ लोग भाजपा की तरफ से प्रत्याशी बनाए गए थे और ११ लोग कांंग्रेस की तरफ से प्रत्याशी बनाए गए थे। भाजपा के ११ में से १० जीते और कांग्रेस के ११में से एक जीती।
भाजपा के दुर्ग से विजय बघेल चार लाख से ज्यादा,राजनांदगांव संतोष पांडे ४४ हजार से ज्यादा,महासमुंद रूपकुमारी चौधरी १,४५ लाख से ज्यादा,जांजगीर चांपा कमलेश जांगड़े ६० हजार मतों से,सरगुजा चिंतामणि महाराज ६४ हजार से ज्यादा,बिलासपुर तोखन साहू १.६४ लाख से ज्यादा, रायगढ़ से राधेश्याम राठिया २,४० लाख से ज्यादा,बस्तर से महेश कश्यप ५५ हजार से ज्यादा,कांकेर भोजराज नाग १८८४ मतो से विजयी रहे हैं।यह सब जीते हैं, इसलिए लायक है कि उनको जो काम दिया गया था,वह इसमें सफल रहे।
सीएम साय व मंत्रियों को इनको जिताने का काम सौंपा गया था इसलिए सीएम साय व उनके मंत्री भी काबिल माने जाएंगे क्योंकि वह अपने ११ प्रत्याशियों में १०को जितानें सफल रहे हैं। साय व मंत्रियों ने पार्टी को चुनाव मे जिताकर अपनी काबिलियक साबित की है। वही कांग्रेस नेता राजेंद्र साहू, भूपेश बघेल, ताम्रधवज साहू, शिवकुमार डहरिया,शशि सिंह,देवेंद्र यादव, मेनका देवी सिंह, कवासी लखमा,बीरेश ठाकुर चुनाव हार गए है, अपनी काबिलियत साबित नहीं कर पाए। कांग्रेस से सिर्फ ज्योत्सनाम मंहत ही कोरबा से जीती है।
इस तरह भाजपा ने तो ११ में १० सीटें जीतकर अपनी काबिलियत का झंडा गाड़ दिया है लेकिन कांग्रेस काबिलियत का झंडा गाडऩे में सफल नहीं हुई है। जो जितना ज्यादा मतो से ज्यादा मतों से जीती है,वह उतना ही काबिल है। कांग्रेस से कई प्रत्याशी ऐसे थे जो भूपेश बघेल सरकार में मंत्री थे और वह भी चुनाव जीत नही सके, यह तो हैरत की बात है, इससे ज्यादा हैरत का बात यह है कि सीएम रहे भूपेश बघेल भी राजनांदगांव से लोकसभा का चुनाव हार गए हैं।
छत्तीसगढ़ में साय के सुशासन व मोदी की गारंटी के चलते कांग्रेस सरकार में रहे मंत्री व सीएम रहे भूपेश बघेल तक चुनाव हार गए हैं। यानी पार्टी ने उनसे उम्मीद की थी कि एक एक सीट तुम लोगों को जीतकर देना है लेकिन यहांके सारे कांंग्रेस नेता ऐसा करने में सफल नहीं हुए ङै। १८ का विधानसभा चुनाव जिताने वाले भूपेश बघेल से पार्टी को उम्मीद थी कि वह एक सीट तो पार्टी के लिे जीतेंगे लेकिन वह भी लोकसभा चुनाव राजनांदगांव से हार गए हैं।
वह राज्य में कांग्रेस के सबसे बड़े नेता माने जाते हैं लेकिन कभी कांग्रस के सबसे बड़े नेता माने जाने वाले भूपेश बघेल एक सीट नहीं जिता पाए हैं। यह उनकी बड़ी नाकामी है। वही सीएम साय ने अपनेे नेता नरेंद्र मोदी को दस सीटें जीतकर दी हैं।यह होता है कि अपने नेता की कसौटी पर खरा उतरना। इस सफलता के बाद सीएम की गिनती अब चुनाव जितानेवाल नेता के रूप में होने लगी है। भाजपा सीएम में मप्र के सीएम मोहन यादव ने पूरी २९ सीटें जीतकर नेतृत्व की ताकत बढ़ाई है। वही छत्तीसगढ़ के सीएम ने ११ में १० सीटें जीतकर दूसरे नंबर पर है।
यह सीएम के साय की बड़ी उपलब्धि है। साय को जब सीएम बनाया गया था तो उनसे उम्मीद की गई थी कि वह छत्तीसगढ़ राज्य की सभी ११ लोकसभा सीटें जीतकर नेतृत्व का हाथ मजबूत करेंगे। वह ऐसा करने में सफल रहे हैं। इससे उनका राजनीतिक कद पूर्व सीएम भूपेश बघेल से तो ज्यादा हो ही गया है।