लोकसभा चुनाव: भाजपा के कमजोर प्रत्याशी चयन से बस्तर में कांग्रेस को वॉकओवर, नक्सल ताकतों को मिलेगा बल
बस्तर में भाजपा के रिस्की दांव, कांग्रेस को अवसर
रायपुर। भाजपा की टिकट फाइनल होने से पहले कांग्रेस में दावेदार हट रहे थे पीछे , महेश कश्यप की टिकट फाइनल होने के बाद कांग्रेस में बढ़े दावेदार
भाजपा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में 400 पार सीट लक्ष्य का दावा किया है, पर छत्तीसगढ़ की नक्सलगढ़ के नाम से कुख्यात बस्तर की महत्वपूर्ण सीट पर भाजपा ने सबको चौंकाते हुए ऐसे नाम अपने पिटारे से ढूंढ निकाले जिसके बारे में भाजपा कार्यकर्ता में अचंभित है।
भाजपा संगठन के इस निर्णय ने मृतप्राय: हो चुकी कांग्रेस में जीवंतता लौट आई है। बस्तर लोकसभा सीट पर नए प्रत्याशी महेश कश्यप को टिकट दी गई है, जबकि कांकेर लोकसभा सीट पर पूर्व विधायक भाेजराज नाग को टिकट दिया गया है। पूरे बस्तर से भाजपा शिक्षित आदिवासी नेता ढूंढ नहीं पाई और दसवीं उत्तीर्ण महेश को नये प्रत्याशी के तौर पर उतारा, जबकि भोजराग नाग मेले में देव-धामी करते दिखाई दे चुके हैं और अपने विधायकी कार्यकाल में क्षेत्र के विकास को लेकर उनकी निष्क्रियता से कार्यकर्ताओं सहित क्षेत्र में भारी नाराजगी देखने को मिली थी।
इधर एक सप्ताह पहले तक बस्तर लोकसभा सीट पर कांग्रेस से एक भी दावेदारी सामने नहीं आ रही थी। वर्तमान सांसद व प्रदेश अध्यक्ष दीपक बैज भी विधानसभा सीट पर मिली हार के बाद इस बार लोकसभा में उतरना नहीं चाह रहे थे। धर्मांतरण विवाद और नक्सलवाद से प्रभावित सीट पर भाजपा ने महेश कश्यप को प्रत्याशी बनाया और इसके साथ ही कांग्रेस के भीतर ही अचानक ही आधा दर्जन से अधिक टिकट के दावेदार सामने आ चुके हैं। स्थिति यह है कि कांग्रेस आलाकमान को दावेदारों को दिल्ली बुलाना पड़ा है।
दीपक बैज, विधायक लखेश्वर बघेल, पूर्व मंत्री कवासी लखमा व पुत्र हरीश कवासी, बीजापुर विधायक विक्रम मंडावी सहित कई दावेदारों ने दस जनपथ का दरवाजा खटखटाया है। टिकट के दावेदारों में सबसे अागे दीपक बैज, हरीश कवासी व लखेश्वर बघेल बताए जा रहे हैं। यह भी बात सामने आ रही है कि कई और भी दावेदार अब लोकसभा सीट पर उतरने को तैयार है।
बस्तर में जहां नक्सली 10 से अधिक भाजपा कार्यकर्ताओं की निर्मम हत्या कर चुके हैं। वहां कमजोर प्रत्याशी चयन से भाजपा ने कांग्रेस की जीत की गाथा लिखने के साथ ही नक्सलतंत्र को ताकतवर होने का अवसर देकर उन निष्ठावान भाजपा कार्यकर्ताओं के परिवार को भी निराश किया है, जो भाजपा को अपना परिवार मान रहे थे।
संघ का दावा उल्टा पड़ना तय
आदिवासी बहुल बस्तर में धर्मांतरण काे विषय बनाकर भाजपा पिछले पांच वर्ष राजनीति करती रही, पर आदिवासियों का बड़ा वर्ग खुद को सनातनी नहीं मानता है। खुद को प्रकृति पूजक मानने वाले आदिवासियों के समक्ष विश्व हिंदु परिषद की ओर से प्रत्याशी थोपकर भाजपा ने अपना गड्ढा खोद लिया है। यहां सक्रिय वामपंथी ताकतों के लिए भी विरोध का खुला अवसर मिल चुका है, जिसे भुनाने में कांग्रेस कोई कमी नहीं रखने वाली है।
दोनों ही स्थिति में रणनीतिक चूक यहां भाजपा कर चुकी है। छत्तीसगढ़ में बस्तर की सीट महत्वपूर्ण इसलिए भी है क्योंकि यह क्षेत्र पिछड़ा हुआ है और यहां व्यापक दृष्टिकोण वाले प्रत्याशी को उतारे जाने की आवश्यकता थी। इसकी बजाय भाजपा में सक्रिय संकीर्ण मानसिकता ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, अमित शाह के सामने ऐसा चेहरा प्रस्तुत कर प्रत्याशी बनवा दिया, जिसका नुकसान इस क्षेत्र को होना तय है।
बस्तर भाजपा में घोर निराशा
इधर भाजपा में टिकट की घोषणा के बाद से ही बस्तर भाजपा में घोर निराशा दिखाई दे रही है। क्षेत्रफल में केरल से भी बड़े बस्तर लोकसभा सीट के अंतर्गत छह जिले आते हैं। इस सीट पर पांच वर्ष पहले सरपंच रहे महेश कश्यप को प्रत्याशी बनाया गया है। टिकट मिलने के बाद जब महेश आशीर्वाद लेने भाजपा कार्यालय पहुंचे तो प्रदेश अध्यक्ष की उपस्थिति के बाद भी गिनती के लोग ही उनके समर्थन में दिखाई दिए। गांव के 50 लोग के अलावा दो-चार प्रमुख भाजपा नेता की उपस्थिति ने बता दिया की इस सीट पर भाजपा का टिकट को लेकर चुनावी भूल कर चुकी है। इस बीच महेश कश्यप दंतेवाड़ा और कोंडागांव जिले में भाजपा कार्यकर्ताओं से मिलने पहुंचे, लेकिन वहां भी गिनती के लोग ही दिखाई दिए। बताया जा रहा था कि छत्तीसगढ़ में टिकट सीधे अमित शाह की निगरानी में तय किए गए हैं। ऐसे में अब देखने वाली बात यह भी है कि शाह को गलत प्रत्याशी चयन के लिए उकसाने वाले कौन थे।
आदिवासी मुख्यमंत्री पर हाशिये पर बस्तर
भाजपा ने पहली बार प्रदेश में विष्णुदेव साय को मुख्यमंत्री बनाकर आदिवासी वर्ग को संतुष्ट करने का काम किया, पर इसका लाभ सरगुजा के आदिवासियों को तो मिलता दिखता है पर बस्तर के आदिवासी नेता पीछे धकेल दिए गए। सरगुजा को सरकार में चार मंत्री दिए गए, पर आठ विधायक देने वाले बस्तर में केवल केदार कश्यप को ही मंत्री बनाया गया। अब कई योग्य दावेदारों के बाद नए, अचर्चित और निष्क्रिय नाम सामने लाकर बस्तर में भाजपा को गर्त में डालने का प्रयास स्पष्ट दिखाई दे रहा है। बस्तर से भाजपा की आदिवासी राजनीति को समाप्त करने की षड़यंत्र की बू लोकसभा प्रत्याशी चयन से तय दिखाई दे रही है।
सबक भूलना पड़ सकता है महंगा
2013 में भाजपा ने बस्तर के संभागीय मुख्यालय जगदलपुर में विहिप के चेहरे योगेन्द्र कौशिक को चुनाव में उतारा था। कांग्रेस के जतिन जायसवाल से वे चुनाव हार गए। 10 वर्ष बाद भी भाजपा दोबारा निगम में अपना महापौर नहीं बना सकी। पिछली भूल से सीख नहीं लेना भाजपा को महंगा पड़ सकता है।