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3 नक्सली ढेर तो 33 ने किया सरेंडर,संदेश साफ है…

बस्तर में नक्सलियों का सफाया रोज-रोज हो रहा है,सांय-सांय हो रहा है तो बस्तर की जनता जहां इससे उम्मीद कर रही है कि उसे नक्सलियों के आतंक से जल्द मुक्ति मिल जाएगी तो वही लगताहै कांग्रेस को यह पसंद नहीं आ रहा है। हो सकता है कि कुछ कांग्रेस नेताओं के मन में नक्सलियों के लिए सहानुुभूति हो,वह उनको बचाना चाहते हो, वह मानते हो कि भटके हुए लोगों को मुख्यधारा में शामिल होने का मौका देना चाहिए। उन्हे इस तरह घेर कर मारना नहीं चाहिए।

पहले कहीं भी पुलिस नक्सली मुठभेंड होते ही मानवाधिकार संगठन, बस्तर मे नक्सली समर्थक एनजीओ सक्रिय हो जाते थे, देश व बस्तर के लोगों को यही बताने की कोशिश करते थे कि पुलिस नक्सलियों के नाम पर आदिवासियों को मार रही है, पुलिस आदिवासियों को गिरफ्तार कर रही है तथा उन पर अत्याचार कर रही है। इसका परिणाम यह होता था कि पुलिस नक्सलियों से मुठबभेड़ से ही बचती थी। मुठभेड़़ हो जाए तो नकसलियों का मारने से डरती थी, पुलिस जवानों की तब संख्या कम होने के कारण भी मुठभेड़ होने पर नक्सली भाग जाने में सफल हो जातेथे। यानी छत्तीसगढ़ में एक वक्त था नक्सलियों का मारना मतबल मुसीबत मोल लेना था। इसलिए नक्सली बहुत कम मारे जाते थे।

अब जब से साय सरकार आई है तो नक्सलियों का सफाया इतनी तेजी से हो रहा है कि जिसकी कल्पना न तो नक्सलियों को थी और न ही कुछ कांग्रेस नेताओं को थी। बीजापुर में तीन नक्सलियों का मार गिराया गया है और ३३ नक्सलियों ने शनिवार के सरेंडर किया है तो इसका संकेत क्या है। इसका संकेट साफ है कि जितने नक्सली मारे जा रहे है उससे तीन गुना ज्यादा नक्सली सरेंडर कर रहे हैं। सरेंडर इसलिए कर रहे हैं कि हर मुठभेड़ में पुलिस व जवान नक्सलियों का मार रहे हैं यानी नक्सलियों के लिए सरकार की तरफ से साफ संदेश है कि सरेंडर करो नही तो मारे जाने का इंतजार करो। मारे जाने का डर बड़े नक्सली नेताओं को भले न हो लेकिन निचले स्तर पर जो छोटे नक्सली नेता है, उनमें तो डर बढ़ रहा है और इस बात का पता इससे चलता है कि एक लाख, दो लाख ईनाम वाले नक्सली ज्यादा सरेंडर कर रहे हैं। मारे जाने का डर बढ़ रहा है इसलिए अब पांच लाख वाले नक्सली भी सरेंडर करने लगे हैं। जिन ३३ नक्सलियो ने शनिवार को सरेंडर किया है, उनमें तीन पांच लाख वाले ईनामी लक्सली हैं।

तीन मारे जाएंगे और ३३ नक्सली सरेंडर करने लगेंगे तो नक्सलियों का सफाया तो जल्द हो जाएगा। ऐसे में नक्सलियों के समर्थकों का चिंतित होना स्वाभाविक है। नक्सली समर्थक अब खुलकर को यह नहीं कह सकते कि सरकार नक्सलियों का सफाया कर गलत कर रही है। क्योंकि राज्य में हर कोई चाहता है कि नक्सलियों का राज्य से जल्द से जल्द सफाया हो। इसलिए नक्सली समर्थक वही नीति काम में ला रहे हैं कि जो नक्सली काम में लाते थे कि पुलिस नक्सलियों को नहीं आदिवासियों का मार रही है। आदिवासियों को गिरफ्तार कर रही है। इसलिए जनता अब समझ जाती है कि कौन नक्सली समर्थक हैं और कौन नक्सलियों का सफाया करना चाहता है। मुठभेड़़ के बाद जो भी नेता बयान देता है कि मुठभेड़ में सिर्फ नक्सली नहीं मारे गए है, ग्रामीण भी मारे गए है, राज्य की जनता समझ जाती है यह नक्सली समर्थक है, यह नक्सलियों का सफाया नहीं चाहता है।सीएम साय के समय सांय सायं नक्सली मारे जाएंगे तो सांय सांय नक्सलियों काे सफाया होगा तो सांय सांय नक्सली समर्थक भी पहचाने जाएंगे।

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