विदेश

बांग्लादेश को भड़का रहा चीन, क्या ड्रैगन है ‘इंडिया आउट कैंपेन’ की वजह

बांग्लादेश :- बांग्लादेश में ‘इंडिया आउट कैंपेन’ की गूंज सुनाई दे रही है. भारत के खिलाफ इस अभियान को चलाने वाली बांग्लादेश की प्रमुख विपक्षी दल बांग्लादेशी नेशनलिस्ट पार्टी यानी BNP है, लेकिन जानकार इसे सिर्फ मुखौटा मान रहे हैं. बांग्लादेश में भारत के असली विरोध की वजह चीन को माना जा रहा है. इससे पहले ड्रैगन मालदीव में भी ऐसी ही साजिश को अंजाम दे चुका है. दुनिया में भारत के प्रमुख दोस्तों में गिना जाने वाले बांग्लादेश में आजकल भारत विरोधी मुहिम छुड़ी है. इंडिया आउट कैंपेन से बांग्लादेश में भारतीय उत्पादों के बहिष्कार की अपील की जा रही है. सोशल मीडिया पर एक तरह का माहौल बनाया जा रहा है, खासतौर से BNP के नेता खुलकर भारत के विरोध में बोल रहे हैं. ऐसा माहौल देखकर सवाल उठना लाजिमी है कि भारत की मदद के भरोसे टिका रहने वाला ये देश आखिर ऐसी भाषा कैसे बोलने लगा. दरअसल इसके पीछे सबसे बड़ी वजह चीन है. आइए समझते हैं कैसे?

बांग्लादेश में आखिर क्या हो रहा है?

बांग्लादेश में जंग तो सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच चल रही है, लेकिन इसका निशाना भारत है. इंडिया आउट कैंपेन के जरिए विपक्षी नेता लगातार भारतीय उत्पादों के बहिष्कार की अपील कर रहे हैं. बीएनपी के वरिष्ठ नेता जनरल रुहुल कबीर रिजवी ने तो हद ही कर दी. हाल ही में कैंपेन को आगे बढ़ाने के लिए उन्होंने कश्मीरी शॉल को जला दिया था. इस पर बांग्लादेश की पीएम शेख हसीना ने पलटवाकर करते हुए यहां तक कह दिया था कि कि जब ये नेता अपनी पत्नियों की भारतीय साड़ियां जलाएंगे तब माना जाएगा कि वास्तव में वे विरोध कर रहे हैं.

चीन से कैसे जुड़ रहा कनेक्शन

बांग्लादेश में भारत के खिलाफ मुहिम चलाने वाले नेता का नाम तारिक रहमान है, तारिक रहमान पूर्व प्रधानमंत्री खालिदा जिया और पूर्व राष्ट्रपति जिया उर रहमान के पुत्र हैं. जिया उर रहमान बांग्लादेश के 8 वें राष्ट्रपति थे. खासतौर से पाकिस्तान से अलग होने के पांच साल बाद चीन ने बांग्लादेश को स्वतंत्र देश के तौर पर मान्यता दी थी. हालांकि दोनों देशों के बीच उस तरह के संबंध नहीं बन सके थे, जैसे दो देशों में होने चाहिए. ऐसे में दोनों देशों के बीच संबंधों को पटरी पर लाने वाले नेता जिया उर रहमान बने थे. उन्होंने इस दौर में बीजिंग का दौरा किया था और बांग्लादेश मुक्त बाजार को बहाल किया था. अब उनके ही बेटे का नाम बांग्लादेश की भारत विरोधी मुहिम में सामने आ रहा है. तारिक रहमान वर्तमान में बांग्लादेश से निर्वासन झेल रहे हैं. उन्हें 2018 में आतंकवाद फैलाने का दोषी मानते हुए 10 साल की सजा सुनाई गई थी.

तारिक को चीन से क्या चाहिए?

हाल ही में बांग्लादेश चुनाव में शेख हसीना की एकतरफा जीत हुई, इसके बाद से ये माने जाने लगा कि बांग्लादेश आवामी लीग को सत्ता से हटाना इतना आसान नहीं है. इसके अलावा बांग्लादेश में कई लोगों का ये मानना है कि शेख हसीना की जीत के पीछे कहीं न कहीं भारत का हाथ है. ऐसे में तारिक रहमान अपने पिता के साथ चीन के संबंधों की दुहाई देकर बांग्लादेश की सत्ता हथियाने के लिए चीन की मदद लेना चाहते हैं. इसीलिए भारत विरोधी मुहिम को चीन की मंशा मानी जा रही है, क्योंकि इससे पहले चीन मालदीव में भी ऐसा कर चुका है. वहां भी अपनी मंशा सिद्ध करने के लिए चीन ने मालदीव की मुख्य विपक्षी पार्टी को बरगलाया था.

बांग्लादेश को कैसे शिकार बना रहा चीन?

भारत के पड़ोसी देशों को धीरे-धीरे चीन अपना शिकार बना रहा है. पाकिस्तान, श्रीलंका, मालदीव के बाद उसका अगला शिकार बांग्लादेश है. वह बड़े पैमाने पर बांग्लादेश में इन्वेस्टमेंट कर रहा है. इसके अलावा हथियारों को भी बेच रहा है. कई मीडिया रिपोर्ट में इस बात का जिक्र है कि बांग्लादेश को हथियार बेचने वालों में चीन नंबर-1 पर है. इसके अलावा वह बांग्लादेश को लगातार कर्ज भी दे रहा है. रेल, हाईवे, पावर प्रोजेक्ट, शिपिंग में इन्वेस्टमेंट के नाम पर चीन लगातार बांग्लादेश को कर्ज में डूब रहा है. एक रिपोर्ट के मुताबिक बांग्लादेश के 27 प्रोजेकट के लिए 20 बिलियन डॉलर का कर्ज दिया है, इसे अलावा 8 चीन बांग्लादेश फ्रेंडशिप ब्रिज के लिए भी अरबों डॉलर कर्ज दिया गया है. ढाका आशुलिया एलीवेटेड एक्सप्रेस वे के लिए भी चीन ने बांग्लादेश 1300 मिलियन डॉलर से ज्यादा का कर्ज दिया है.

बांग्लादेश पर कब्जे से चीन का क्या फायदा?

चीन ने बांग्लादेश के प्यारा पोर्ट को डेवलेप करने के लिए अनुबंध किया है. ठीक वैसे ही जैसे पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट और श्रीलंका के हंबनटोटा पोर्ट को विकसित करने के लिए किया गया था. ग्वादर चीन के कब्जे में है, श्रीलंका को भारी कर्ज देकर उसके बहाने चीन हंबनटोटा पोर्ट को भी 99 साल की लीज पर ले चुका है. भारत के पड़ोसी देशों में सिर्फ बांग्लादेश का प्यारा पोर्ट र्आर चिटगांव पोर्ट ही बचा था. इन दो बंदरगाहों पर कब्जा करने के बाद एशिया में भारत को छोड़कर एशिया के ज्यादातर देशों के बंदरगाहों पर चीन का प्रभुत्व होगा. ऐसे में वह भारत पर भी दबाव बना सकेगा और पश्चिमी देशों के साथ भी सौदेबाजी कर सकेगा.

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