किसी राज्य में चुनाव व उपचुनाव मतलब होता है राज्य के नेताओं के लिए फिर एक ऐसी परीक्षा जिसमें सफल होना जरूरी है। नेता चाहे सत्तारूढ़ दल का हो या विपक्ष का है। दोनों के लिए जरूरी होता है कि वह अपनी पार्टी को जिता कर दिखाएं। जो जिता देता है, वह होता है बड़ा नेता,उसका कद राज्य में और ऊंचा हो जाता है। नेता जितने चुनाव व उपचुनाव जिताता है, उसका कद उतना ही बढ़ता है और जो नेता जितना चुनाव व उपचुनाव पार्टी को नहीं जिता पाता है उसका कद उतना ही कम होता जाता है।
राज्य में भूपेश बघेल सहित कई कांग्रेस नेता जो विधानसभा में कांग्रेस को जिता नहीं पाए, उसके बाद लोकसभा में भी अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाए यानी पार्टी जितनी सफलता चाहती थी, उतनी सफलता पार्टी को दिला नहीं पाए। उनका कद पहले की तुलना में कम हुआ है क्योंकि वह न तो विधानसभा चुनाव जिता पाए और न ही लोकसभा चुनाव जिता पाए।ऐसे में उनके सामने रायपुर दक्षिण की सीट को जीतना एक और बड़ी चुनौती है।
यह सीट बृजमोहन अग्रवाल के सांसद पर खाली हुई है। यह विधानसभा क्षेत्र भाजपा सबसे मजबूत किला माना जाता है, यहां से बृजमोहन अग्रवाल जीतते रहे हैं।यहां बृजमोहन अग्रवाल के सामने कांग्रेस ने जिसे भी खड़ा किया वह हारा है।पिछले चार चुनाव की बात करें तो २००८ में योगेश तिवारी,२०१३ में किरणमयी नायक,२०१८ में कन्हैया अग्रवाल व २०२३ में महंत रामसुंदरदास को कांग्रेस ने बृजमोहन को हराने के लिए उतारा था, लेकिन चारो हार गए। माना जाता है कि जो बृजमोहन अग्रवाल के सामने चुनाव लड़ता है व हारता तो जरूर है और उसका राजनीतिक भविष्य भी समाप्त हो जाता है। इसलिए बृजमोहन के खिलाफ चुनाव लड़ने से बड़े नेता तक कतराते हैं।
माना जाता है कि पूर्व सीएम भूपेश बघेल से पिछले लोकसभा चुनाव में कहा गया था कि वह रायपुर दक्षिण से चुनाव लड़े और बृजमोहन अग्रवाल को हराकर एक और सीट कांग्रेस के लिए जीतें लेकिन भूपेश बघेल ने रायपुर दक्षिण से चुनाव लड़ने से साफ मना कर दिया और राजनांदगांव से चुनाव लड़े और वहां भी नहीं जीत पाए।
कहा जाता है जब अच्छे दिन रहते हैं तो हर चुनाव में जीत मिलती है,भूपेश बघेल के अच्छे दिन थे तो विधानसभा चुनाव जीतने के बाद राज्य में जितने उपचुनाव हुए थे, जितने नगर निकाय,पंचायत हुए थे, सब कांग्रेस ने जीते थे।तब राज्य में कांग्रेस का कोई मुकाबला नहीं था। आज हाल यह है कि भूपेश बघेल जीत का दावा कर विधानसभा चुनाव में पार्टी को नहीं जिता पाए, उसके बाद लोकसभा चुनाव में कुछ खास नही कर पाए।
अभी तो दिल्ली दरबार ने जय-वीरु को महाराष्ट्र में कांग्रेस को चुनाव जिताने की जिम्मेदारी सौंपी है। चर्चा है कि जय वीरू के अलावा दो और राज्य के पूर्व सीएम व डिप्टी सीएम को भी महाराष्ट्र का चुनाव जिताने के लिए लगाया गया है।यह जय-वीरू की एक और बड़ी परीक्षा है।
इसमें पास हुए तो अच्छा दोनों को कद दिल्ली दरबार मे थोड़ा ऊंचा हो जाएगा। हमेशा की तरह नहींं जिता पाए तो राजनीतिक महत्व और कम हो जाएगा।वैसे तो माना जाता है कि भूपेश बघेल को जहां भी चुनाव जिताने के लिए भेजा जाता है तो वहां कांग्रेस हार जाती है।असम और यूपी इसका उदाहरण है।
जय-वीरू को दिल्ली से बड़ी जिम्मेदारी मिली तो चरणदास महंत को कैसे भुला दिया जाता,उनको ओडिशा में कांग्रेस के संगठन का काम देखने की जिम्मेदारी दी गई है।
संदेश दिया गया है कि महंत भी कांग्रेस के बड़े नेता है, उनका कद भी दिल्ली में कम नहीं है।कांग्रेस में पद से कद नापा जाता है, इसलिए ज्यादातर नेता पद पाने के जुगाड़ में रहते हैं जिसे मिल जाता है, वह बड़ा नेता हो जाता है, भले ही वह अपने राज्य में चुनाव या उपचुनाव न जिता सके।