बिलासपुर। छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने छुट्टी के दिन बेटे की याचिका पर तत्काल सुनवाई करते हुए उसके मृत पिता के शव को धार्मिक मान्यता के अनुसार दफनाने की अनुमति दी है। एसपी बस्तर को इसके लिए सुरक्षा देने के निर्देश दिए गए हैं, ताकि हिंदू बहुल गांव में अंतिम संस्कार के वक्त कोई अप्रिय स्थिति न बने। जानकारी के मुताबिक, याचिकाकर्ता सार्तिक कोर्राम के पिता ईश्वर कोर्राम को सांस लेने में तकलीफ के चलते 25 अप्रैल को बस्तर जिले के डिमरपाल अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जहां इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई। याचिकाकर्ता और उसका परिवार ईसाई धर्म को मानते हैं और उसका प्रचार-प्रसार करते हैं। पिता की मौत के बाद जब वे शव ग्राम छिंदबहार ले जाने की व्यवस्था एंबुलेंस से कर रहे थे, तब थाना प्रभारी परपा ने उन्हें रोका और उसे ग्राम छिंदबहार में शव को नहीं दफनाने की बात कही।
थाना प्रभारी ने युवक से कहा कि छिंदबहार गांव हिंदू बहुल है और वहां ईसाई धर्म के लोगों के अंतिम संस्कार के लिए अलग से कोई जगह नहीं है, इसलिए वो कहीं और अपने पिता के शव को दफनाए। इस पर याचिकाकर्ता ने एसएचओ, पीएस से अनुरोध किया कि पिता के शव को ग्राम छिंदबहार ले जाने की अनुमति दी जाए। मगर उन्हें अनुमति नहीं दी गई। 26 अप्रैल को बस्तर कलेक्टर और एसपी को भी आवेदन दिया गया, लेकिन संबंधित अधिकारियों ने भी कोई कार्रवाई नहीं की। शव मेडिकल कॉलेज अस्पताल जगदलपुर की मर्चुरी में पड़ा रहा। इसके बाद बेटे ने हाईकोर्ट में अर्जेंट हियरिंग का अनुरोध किया। जस्टिस राकेश मोहन पांडेय की बेंच ने शनिवार शाम 6.30 बजे सुनवाई की। याचिकाकर्ता के वकील प्रवीन तुलस्यान ने कहा कि अपने पिता के शव को दफनाना भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत याचिकाकर्ता का मौलिक अधिकार है।
जस्टिस राकेश मोहन पांडेय ने मेडिकल कॉलेज जगदलपुर को मृतक ईश्वर कोर्राम का शव याचिकाकर्ता को सौंपने का निर्देश दिया गया है। याचिकाकर्ता को किसी भी कानून से बचने के लिए अपने पिता के शव को ग्राम छिंदबहार में अपनी जमीन पर दफनाने की अनुमति दी गई है। पुलिस अधीक्षक बस्तर को यह भी निर्देशित किया गया है कि याचिकाकर्ता को उचित पुलिस सुरक्षा प्रदान की जाए, ताकि वे शव को शालीनता से दफना सकें। याचिकाकर्ता को 28 अप्रैल को अपने पिता का शव दफनाने की अनुमति दी गई है।