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कांग्रेस को भाजपा से गठबंधन को जिताना सीखना चाहिए

दीपेश निषाद

कांग्रेस एक के बाद एक चुनाव हारती रहती है,इससे दिल्ली के नेताओं पर कोई असर न पड़ता हो लेकिन राज्यों में निचले स्तर के कार्यकर्ताओं पर असर पड़ता है, वह अपनी पार्टी के कहीं भी हारने से बहुत निराश होते हैं।ऐसी पार्टी में कौन कार्यकर्ता रहना पसंद करेगा जो चुनाव लड़ती है और चुनाव हारती है।

कांग्रेस कार्यकर्ता इंतजार करते हैं कि उनकी पार्टी कब चुनाव जीतेगी,राज्यों में उसकी स्थिति कब मजबूत होगी.वह नंबर वन की पार्टी बनेगी।

एक दिन कार्यकर्ता भी निराश होकर पार्टी का काम करना बंद कर देते है और नेता दूसरी पार्टी में चले जाते हैं।कांग्रेस प्रवक्ता दिल्ली में कहते रहते हैं कि हम लड़ते रहे हैं, हम लड़ते रहेंगे।

महाराष्ट्र में कांग्रेस,उध्दव शिवसेना,एनसीपी शरद पवार के गठबंधन की विधानसभा चुनाव में ऐतिहासिक पराजय हुई है।महाराष्ट्र के चुनावी इतिहास में आज तक कांग्रेस की इतनी बुरी हार नहीं हुई,उध्दव ठाकरे व शरद पवार की पार्टी की इतनी बुरी हार नहीं हुई है।जब पार्टी के पास नेता ज्यादा हो जाते हैं और कार्यकर्ता कम रह जाते हैं तो पार्टी के नेताओं को जमीनी हकीकत का पता नहीं चलता है।

वह हर चुनाव में हवा में उड़ते रहते हैं,हम ही जीत रहे हैं।हम तो हार नहीं सकते।महाराष्ट्र में आखिरी तक एमवीए के नेताओं को पता नहीं चला कि वह हार नहीं रहे हैं, बुरी तरह हार रहे हैं।

हार नहीं बुरी हार तब होती है जब पार्टी हो गठबंधन हो वह एकजुट नहीं रहता है, उसके नेता जीतने के लिए मेहनत नहीं करते हैं। आए दिन मीडिया में बयानों के जरिए उनके मतभेद सामने आते रहते हैं।

इससे जनता को पता चल जाता है कि यह लोग एकजुट नहीं है, इनको जिताने पर मजबूत व स्थायी सरकार नहीं बनने वाली है,राज्य का विकास नहीं होने वाला है, राज्य की जनता को फायदा नहीं होने वाला है।

एमवीए गठबंधन के नेता पहले सीटों के लिये आपस में लड़े, फिर सीएम पद के लिए लड़े, यहां तक की मतदान होने के बाद भी उनकी लड़ाई चलती रही।

गठबंधन चुनाव बुरी तरह हार रहा था और गठबंधन के दलों के नेता कह रहे थे कि सीएम तो उनका बनेगा।दूसरे ने विरोध किया कि ऐसा कैसे हो सकता है। जनता ने एमवीए गठबंधन को चुनाव में नकार दिया।

क्योंकि वह एकजुट नहीं था,उसमें हर बात को लेकर आपसी मतभेद बहुत ज्यादा थे। यहां पर गठबंधन के एकजुट, मजबूत व भरोसे का गठबंधन बनाने का सबसे बड़ी पार्टी होने के नाते कांग्रेस को करना था, वह इसमें बुरी तरह असफल रही और राहुल गांधी को कांग्रेस की हार अप्रत्याशित लगती है,उध्दव ठाकरे को चुनाव बुरी तरह हारने के बाद लगता है कि यह तो लहर नहीं सुनामी थी,शरद पवार की तरह से कोई बयान आया नहीं है।

चुनाव हारने के बात एमवीए को पहले इस बाद पर गौर करना था कि क्या हम चुनाव के दौरान एकजुट थे, हमारे आपस में कोई मतभेद नहीं हैं। क्या हमारा गठबंधन दूसरे गठबंधन की तुलना में भरोसे का था, ऐसा कोई नहीं सोच नहीं रहा है, हार का कारण कोई आपसी लड़ाई व मतभेद को मान नहीं रहा है।

वही भाजपा ने अपने गठबंधन का मजबूत किया, आपसी मतभेद रहे भी गठबंधन के भीतर सुलझा लिए गए, सीएम व सीटों के लिए कोई लडा़ई नहीं हुई।

भाजपा ने सबसे बड़ी पार्टी होने के नाते गठबंधन को जनता की नजर में भरोसे का बनाए रखा,इसलिए जनता ने उसे चुना है। जनता को लगा कि यह गठबंधन एकजुट है, मजबूत है,भरोसे का है, इसलिए यही मजबूत सरकार दे सकता है।

जनता ने दोनों गठबंधन में से एक गठबंधन को चुनना था, जनता ने मजबूत गठबंधन को चुना। स्थायी सरकार दे सकने वाले गठबंधन को चुना। जनता ने महाराष्ट्र में बहुत सोच समझ कर फैसला किया कि किस गठबंधन को चुनना है।जनता के सामने उध्दव व शिंदे में किसी एक को चुनना था, उध्दव ने जनादेश का अपमान सत्ता के लिए किया था, इसलिए जनता ने उस बड़ा गुनहगार माना बड़ी सजा दी।

शिंदे ने पार्टी तोडने़ का गुनाह किया लेकिन पार्टी तोडऩे का मकसद सत्ता नहीं था, पार्टी की विचारधारा व विरासत को बचाना था। इसलिए जनता ने उसे माफ कर दिया। इसी तरह एनसीपी में भी दो धड़ों में जनता को तय करना था कि असली कौन है और नकली कौन है तो उसने अजीत पवार को ज्यादा सीटें जिताकर बता दिया कि यही अब असली एनसीपी है।

शरद पवार जो खुद को महाराष्ट्र का चाणक्य समझते थे, जनता ने उनको बता दिया है कि अब उनके दिन गए। अब जनता उनको न तो बड़ा नेता मानती हैं न ही चाणक्य मानती हैंं। इस चुनाव में बुरी गत कांग्रेस की भी हुई है, वह पांचवें स्थान पर आ गई है।

यानी महाराष्ट्र में वह कुछ मजबूत थी तो अब वह भी नहीं रही और इसका कोई अफसोस दिल्ली के नेताओं,प्रवक्ताओं को नहीं है।हर चुनाव मेें हारने के बात वह कहते हैं कि हम ल़ड़ते रहेेेंगे,हम हारें या जीतें हम चुनावी प्रक्रिया पर सवाल उठाते रहेंगे।

कांग्रेस के नेता सपने देखते रहते हैं कि इसलिए चुनाव हारते है, वह कहते हैं कि लोकसभा चुनाव में जनता ने भाजपा को कम सीटें दी थी, वह विधानसभा में जिता कैसे सकती है, उनको पता नहीं है कि भाजपा के चुनाव मशीनरी है जो हार को जीत में बदलना जानती है, छोटी जीत को बड़ी जीत बनाना भी जानती है,

भाजपा नेता सपने नहीं देखते कि पिछली बार जीत गए थे इसलिए अगला चुनाव हम जीतेंगे।भाजपा में कार्यकर्ता से लेकर नेता तक सब मेहनत करते है तो विजय नहीं महाविजय संभव होता है।

कांग्रेस नेताओं प्रवक्ताओं को समझने की जरूरत है,लड़ाई लड़ते रहने से कुछ नहीं होता है, लड़ाई जीतनी भी पड़ती है। चुनाव लड़ने से कुछ नहीं होता है, चुनाव जीतने के लिए लड़ना पड़ता है। राहुल गांधी को कांग्रेस नेता योध्दा कहते हैं, गजब के योध्दा है, चुनाव हारते जाते है, और कांग्रेेसी उनको योध्दा बनाए रखते हैं।

योध्दा तो वह होता है जाे हारने के बात जीतता भी है।राहुल गांधी तो हारते जा रहे है, एक चुनाव के बाद दूसरा चुनाव।

हार को सहज रूप से स्वीकार नहीं करते हैं, योध्दा तो वह होता है जो हार को भी सहज स्वीकार करता है और जीत में भी सहज बना रहता है।

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