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गलती का खामियाजा तो सबको भुगतना पड़ता है…

सातवें आसमान पर पारा, रिकार्ड गर्मी, पारा पहुंचा ४७ पार,प्रदेश में भीषण गर्मी,गर्मी ने दिखाया रौद्र रूप, आसमान से आग बरस रही है। यह ऐसे वाक्य हैं, जो आजकल पढ़ने व सुनने को मिलते हैं। इन दिनों गर्मी वाकई बहुत बढ़ गई है क्या। कुछ लोग कह सकते हैं कि हां भई, हां गर्मी वाकई बहुत बढ़ गई है। पुरानी पीढ़ी के अनुभवी लोग कह सकते हैं,गर्मी तो उतनी ही पड़ रही है जितनी हमेशा पड़ती है। मई जून में पारा हर साल ४५ से ऊपर तो जाता ही है, इसमें नई बात क्या है,परेशान होने वाली बात क्या है। पुरानी पीढ़ी के लोग कह सकते हैं कि नई पीढ़ी को इन दिनों होने वाली गर्मी का एहसास ज्यादा होता है क्योंकि पंखा,कूलर व एसी की आदी पीढ़ी को पारा ४० से ऊपर जाते ही गर्मी कुछ ज्यादा ही लगने लगती है। वह गर्मी सहन करने के आदी नही हैं। उनकी गर्मी सहने की क्षमता पुरानी पीढ़ी की तुलना में कम हो गई है।

गर्मी ज्यादा लगने की एक वजह तो आदमी की गर्मी सहन करने की क्षमता का कम हो जाना है। दूसरी वजह यह है कि सुख सुविधा में जीने के लिए लोगों ने सोचा नहीं कि इसकी वजह से आने वाला पीढ़ियों का क्या परेशानी हो सकती है। जैसे हर कोई पक्का मकान चाहता है लेकिन वह यह सोच नहीं पाता है कि पूरा शहर ही क्रंक्रीट का जंगल हो जाएगा तो उसमें रहना कितना मुश्किल होगा। पूरे शहर में पक्के मकानों के कारण शहर का तापमान बढ़ता है यह हम सोच नहीं पाते हैं, पक्के मकान धूप में देर से गर्म होते है तो उससे घर के आसपास की हवा भी गरम होती है, पक्का मकान देर तक गर्म रहता है। ऐसे मकान में बिना कूलर, पंखा व एसी के रहना मुश्किल होता है।

घर से बाहर निकलो तो शहर की सडकें तो चौड़ी हो गई है, डामरवाली हो गई है लेकिन सड़क किनारे अब दूर तक पेड़ नही दिखाई देते है। चौड़ी सड़कों के कारण शहर के भीतर जो सैकड़ा व हजारों पेड़ थे, वे काट दिए गए। इससे चौड़ी सड़क पर दूर तक छांव नहीं मिलती है। सड़क किनारे पेड़ पौधे न होने से स़ड़क भी धूप में गर्म होती है और उससे शहर की हवा भी गर्म होती है। यानी लोग अपने घर से बाहर निकलते है तो तेज धूप, गर्म हवा का सामना करना पड़ता है। जो लोग एसी वाली कार मे सड़कों पर निकलते हैं, उनको भले ही गर्मी का एहसास न हो लेकिन दोपहिया पर चलने वाले को होता है, चाहे कार वाला हो या बाइक वाला वह जब सड़क पर चलता है तो शायद ही यह सोचता है कि इस गर्म शहर में गर्म हवा के लिए वह खुद भी दोषी है।

किसी भी शहर में हजारों पक्के मकान हों, हजारों किमी पक्की चौड़ी सड़कें हो, लाखों वाहन हो तो वह शहर गर्म तो रहेगा ही क्योंकि चाहे पक्का मकान हो,पक्की सड़क हो या कोई भी वाहन हो वह तो शहर की हवा को गर्म करता ही है। एक तो हमारी गर्मी सहने की क्षमता कम हो गई और उस पर शहर की हवा गर्म होती जा रही है। परेशानी तो होगी है, गलती का खामियाजा तो सबको भुगतना पड़ेगा ही। जैस हमारे शरीर का तापमान संतुलित करने का एक कुलिंग सिस्टम होता है। इससे गर्मी में शऱीह पसीना निकलने के कारण ठंड़ा रहता है। यह कुलिंग सिस्टम बिगड़ जाता है तो आदमी को लू लग जाती है।

हम सोच नहीं पाते हैं कि शहर में अब ज्यादा गर्मी लग रही है तो इसका एक कारण यह भी तो हो ससता है कि हमने शहर के कुलिंग सिंस्टम तो बनाए रखने कोई सामूहिक प्रयास नहीं किया। हमारा शहर है तो इस शहर को कुलिंग सिस्टम को बचाए व बनाए रखाना हमारी जिम्मेदारी है। हमने यह जिम्मेदारी नहीं निभाई। हमें पक्के मकान, पक्की सड़कें, महंगे वाहन तो मिल गए हैं लेकिन इससे हमारे शहर का कुलिंग सिस्टम ही बिगड़ गया है। कौन नहीं जानता है कि शहर के तापमान को कम करने का काम पेड़ पौधे करते हैं। पेड़े पौधे ही किसी शहर का कुलिंग सिस्टम होते हैं। जहां यह बड़ी संख्या मेंं होते है, ताममान को कम करने का काम करते हैं जहां यह नहीं होते हैं, वहां तापमान ज्यादा रहता है। कांक्रीट के जंगल में भयंकर गर्मी कहीं न कहीं हमारी गलती के कारण है इसलिए हमको हमारी गलती का खामियाजा तो भयंकर गर्मी के बीच रहकर भुगतना ही पड़ेगा।

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