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निजी संपत्ति पर सरकार पहले की तरह कब्जा नहीं कर सकती

किसी की भी निजी संपत्ति पर कोई कब्जा कर ले तो उसे बुरा लगता है। क्योंकि निजी संपत्ति आदमी और उसका परिवार मेहनत करके भी बनाता है, बरसों मेहनत के बाद संपत्ति का निर्माण होता है।

सरकार ही आदमी की निजी संपत्ति पर कब्जा करे तो लोगों अधिकार है कि वह उसका विरोध करे।आजादी के बाद सरकार को देश व विकास के लिए बहुत सारी जमीन की जरूरत थी,सरकार ऐसे ही तो किसी की जमीन पर कब्जा नहीं कर सकती तो उसने विकास के लिए जमीन लेने के नाम पर कानून बनाया और उसके बाद उसने राज्य व देश के विकास व जरूरत के नाम पर जमीन पर कब्जा करने लगी।

सरकार जो लोगों की जानो माल की रक्षा करती है,वही जब लोगों की जमीन पर कानून बनाकर कब्जा करने लगे तो लोगों के पास सरकार के पास जाने को कोई मतलब नहीं होता है लेकिन संविधान में लोगों को अधिकार मिला हुआ है कि यदि सरकार आपकी जमीन पर, संपत्ति पर कब्जा करती है तो आप सुप्रीम कोर्ट में शिकायत कर सकते हैं, वह फैसला करेगी की सरकार जो कर रही है, वह सही है या गलत।

आजादी के बाद के दौर में सरकार को जिस जमीन की जरूरत होती थी, उसे अधिग्रहित कर लेती थी और मुआवजा भी वह खुद ही तय करती थी। इससे लोगों को नुकसान होता था। ऐसे लोगों ने अपनी जमीन पर कब्जा न होने देने के लिए सुप्रीम कोर्ट में गुहार लगाई।

सुनवाई के दौरान मुद्दा उठा कि क्या निजी संपत्ति को समुदाय की भलाई के नाम सरकार अधिग्रहित कर सकती है।सीजेआई चंद्रचूड़ ने इसी साल इस मामले की सुनवाई के लिए 9 जजों की बेंच बनाई।सुनवाई के बाद एक मई तो बेंच ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था। उसे अब सुनाया गया है।

सीजेआई ने बताया कि बहुमत ने 1978 के जस्टिस कृष्णा अय्यर फैसले को खारिज कर दिया गया है। उन्होंने अपने फैसले में बताया था कि सरकार निजी संपत्ति आम लोगों की भलाई के अधिग्रहित कर सकती है।

सीजेआई ने बताया कि इसमें सैध्दांतिक त्रुटि यह थी कि यह निजी संसाधनों पर सरकारी नियंत्रण की वकालत करता है।

आजादी के बाद के दो तीन दशक तक शासन वामपंथी व समाजवादी विचारधारा से प्रभावित था।वह उसी विचारधारा के अनुसार काम करना चाहता था, क्योंकि तब माना यही जाता था कि समाजवादी व वामपंथी विचारधारा के अनुसार शासन ही सबसे अच्छा शासन है, इसी से जनता का,देश का कल्याण हो सकता था।

उस वक्त सरकार को भले ही लगता हो वह जो निजी संपत्ति मामले में कर रही है,सही कर रही है, लेकिन जनता को तो गलत लगता था। इसीलिए तो जनता सुप्रीम कोर्ट गई और सुप्रीम कोर्ट ने निजी संपत्ति के मामले में सरकार के अधिकार में कटौती की है

अब सरकार किसी भी निजी संपत्ति को अधिग्रहित नहीं कर सकती है, अगर उसे लगता है कि जनहित में जरूरी है तो उसे बताना होगा कैसे जरूरी है तथा बाजार रेट पर मुआवजा देना होगा।

पहले क्या होता था, सरकार निजी संपत्ति वालाें को सूचना देती थी कि आपकी संपत्ति ली जा रही है, इसका इतना मुआवजा आपको मिलेगा। कोई शिकायत कोई सुनवाई नहीं होती थी अब कम से कम सरकार जमीन लेगी को बाजार रेट पर मुआवजा तो देगी।यह तो हुआ इसका कानूनी पहलू। इसका राजनीतिक पहलू यह है कि इस फैसले के बाद अब समाजवादी विचारधारा पुराने जमाने की बात हो गई।

अब कोई कहेगा कि हमारी सरकार आएगी तो सबके पास बराबर संपत्ति होगी, हमारी सरकार आएगी तो सबको सत्ता में हिस्सेदार मिलेगी। लोग यकीन करने से रहे। क्योंकि अब सरकार कम से कम यह तो कह नहीं सकती, कर नहीं सकती कि हमारी सरकार आएगी तो हम संपत्ति का बंटवारा फिर से करेंगे।

वैसे तो राहुल गांधी ने पिछले लोकसभा चुनाव में जनता से यह वादा किया था कि वह पता लगाएंगे कि देश में किसके पास कितनी संपत्ति है, उसके बाद उसका गरीबों में बंटवारा किया जाएगा,उन्होंने गरीब महिलाओं को लखपति बनाने का वादा किया था लेकिन उनकी बात पर देश की जनता ने भरोसा नहीं किया।

देश की जनता भी जानती है कि संपत्ति तो वही होती है जो मेहनत से अर्जित की जाती है,हमारे देश में संपत्ति के उस तरह किसी से छीनकर बंटवारे पर कभी जोर नहीं दिया गया है जैसा कि विदेशों में दिया जाता है। हमारे देश में संपत्ति के बंटवारे में आदमी की इच्छा शामिल होती है,

वह गरीबों को दान कर सकता है, जन सुविधा के काम करा सकता है, लोगों की पैसे देकर मदद कर सकता है,हमारे देश में संपत्ति को चंचला कहा गया है, यानी माना जाता है कि यदि आपके पास संपत्ति है तो उसका बड़ा हिस्सा गति में रहना चाहिए।

उससे संपत्ति का निर्माण होता है, यदि वह घर में ही पड़ा रहता है तो वह किसी काम का नहीं माना जाता है।संपत्ति तो वही शुभ होती है जो जनता,राज्य व देश के काम आए।

सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया है कि निजी संपत्ति पर जनता का भी हक होता है, पहले की तरह सरकार उस पर कब्जा नहीं कर सकती। वह मांग सकती है, बता सकती है कि किस काम के लिए उसे जमीन चाहिए, उससे जनता व राज्य का क्या भला होगा।

यह सरकार व जनता के बीच कई दशकों से चली आ रही लड़ाई में जनता की जीत है क्योंकि पुराने समय में तो सरकार उनकी बात तक नहीं सुनती थी। अब सरकार को भी जनता की बात सुननी पड़ेगी।

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