छत्तीसगढ़ राज के जतका मूल परब-तिहार हे, सबके संबंध कोनो न कोनो रूप ले अध्यात्म संग जरूर हे। ए बात अलग आय के आज हम उंकर मूल कारण ल भूलागे हावन, तेकर सेती प्रकृति या खेती-किसानी संग जोड़ के वोला कृषि संस्कृति के रूप म बताए अउ जाने लगथन।
इहां के संस्कृति म सावन महीना के पहला परब “हरेली” के संग घलो अइसनेच बात हे। ए दिन जम्मो किसान अपन नांगर- बक्खर संग आने जम्मो कृषि यंत्र के धो-मांज के पूजा करथें। एकरे सेती एकर चिन्हारी ल कृषि पर्व के रूप म बताए जाथे। फेर एकर आध्यात्मिक पक्ष के अनदेखा कर देथें।
आप सबो झन जानथौ के इही दिन के आगू रतिहा जम्मो गाँव मन म गाँव बनाए के परंपरा ल घलो पूरा करे जाथे। इहां के ग्रामीण संस्कृति म “बइगा” कहे जाने वाला “मांत्रिक” मन इही दिन अपन-अपन मंत्र के पुनर्पाठ करथें। माने साल भर म वोला फिर से जागृत करथें। कतकों झन मन इही दिन मांत्रिक गुरु अउ शिष्य घलो बनाथें। गुरु शिष्य के रूप म परब मनाथें।
इहां ए बात जाने के लाइक हे, के सावन महीना के इही अमावस के दिन महादेव ह मांत्रिक शक्ति के उदगार या प्रकट करे हें। अइसे कहे जाथे के, उन अपन त्रिशूल म बंधाए सिंघिन ल फूंक के मंत्र मन के उद्घोष करे हें, उनला प्रगट करे हें। अब ये कतका सही अउ कतका कल्पना के बात आय, एला तो उहिच ह जानय, फेर ए बात सोला आना सच आय, के हरेली परब के संबंध अध्यात्म संग जरूर हे।