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एक रहेंगे तो नेक रहेंगे! युद्ध न कीजिए पर भरोसा भी मत कीजिए पाकिस्तान पर!

नई दिल्ली। भारतीय सैन्य शक्ति, राजनीतिक नेतृत्व के शक्ति, संयम और सूझबूझ से बहुत कम समय में भारत ने वह हासिल कर लिया,जिस पर समूचा भारत मुस्करा रहा है। पहलगाम हमले से पैदा हुई बेबसी, आर्तनाद से मर्माहत हुए राष्ट्र ने जवाबी कार्रवाई से राहत की सांस ली है। अब जबकि युद्ध विराम हो चुका है तो संतोष करना चाहिए कि भारत युद्ध को आतुर देश नहीं है, बल्कि हम आतंकवाद के विरुद्ध अपनी जंग के लिए प्रतिबद्ध हैं।

पिछले कुछ दिनों में जैसे हालात बन गए थे, उससे साफ लग रहा कि अब भारत एक ऐसे देश के रूप में उभरा है,जो अपने लोगों का खून बहते नहीं देख सकता। भारतीय बलों की सटीक कार्रवाई ने आतंकवादियों के न सिर्फ ठिकाने उड़ा दिए बल्कि सौ के करीब आतंकियों को समाप्त कर दिया है। भारत का यह संकल्प बहुत प्रखर है और दूरगामी है, जिसमें यह कहा गया है कि भविष्य में होने वाली हर आतंकी गतिविधि को युद्ध माना जाएगा।

भारत दुनिया का पहला ऐसा देश है ,जिसने एक परमाणु शक्ति संपन्न देश पर कार्रवाई की है। आज भारत आतंकवाद के विरुद्ध अपनी प्रतिबद्धता से विश्व मंच पर आदर पा रहा है। दुनिया के तमाम देशों ने भारत का न सिर्फ साथ दिया, बल्कि पाकिस्तान को लताड़ भी लगाई। पाकिस्तान की सेना और उसके राजनीतिक प्रतिष्ठान की बदनीयत दुनिया के सामने आ चुकी है।

आर्थिक प्रतिबंध, आयात -निर्यात प्रतिबंध, सैन्य कार्रवाई, सिंधु जल समझौता तोड़कर, पाकिस्तानी नागरिकों को भारत से निकालकर ,पांच एयरबेस नष्ट कर भारत की सरकार ने अपने इरादे जाहिर कर दिए। पाकिस्तान के मंत्रियों, सांसदों की परमाणु धमकियों के बाद भी भारत ने संयम रखकर अपने लक्ष्य हासिल किए। इसके साथ ही इस क्षेत्र को युद्ध में झोंकने से भी बचाया। अंतिम समय तक निरंतर संवाद बनाए रखते हुए भारत की सरकार ने अपार सूझबूझ का परिचय दिया।

चार दिनों में घुटनों पर पाकिस्तान

पाकिस्तान ने सिर्फ चार दिनों में घुटनों पर आ गया बल्कि उसने बातचीत के तमाम चैनल खोले। आतंकवाद के विरुद्ध भारतीय प्रतिबद्धता का प्रकटीकरण तो हुआ है लेकिन पाकिस्तान भरोसे के लायक नहीं है। पाकिस्तान के राजनीतिक नेतृत्व और फौज के बीच बहुत गहरी खाइयां हैं। सच तो यह है कि पाकिस्तान सत्ता तंत्र को यह भरोसा नहीं था कि भारत आपरेशन सिंदूर जैसा कदम उठाकर कार्रवाई करेगा।

युद्धोन्माद नहीं संयम

भारत की सरकार ने संवाद,संयम और प्रतिकार तीनों मोर्चे पर एक साथ काम किया। पाकिस्तानी नागरिकों के विरुद्ध नहीं, आतंकवाद के विरुद्ध अपनी प्रतिबद्धता का साफ इजहार किया। यह जीत इसलिए साधारण नहीं है। यह बड़ी कामयाबी है। भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कहते रहे हैं कि “यह युद्ध का समय नहीं है।” यह संयम भी भारत को दुनिया में सम्मान दिलाता है। भारत सरकार ने टीवी चैनलों को भी संयम बरतने की सलाहें दीं। सेना आज भी हाई अलर्ट पर है। पुंछ, राजौरी में काफी नुकसान हुआ, यह भी सामने है। पाकिस्तान को एक अवसर और राहत जरूर मिली है। अपने बदहाल आर्थिक हालात से जूझ रहे पाकिस्तान को खुद को संभालना है। आतंकवाद की नर्सरी बन चुके देश को सबक सिखाना जरूरी है। एक अराजक पाकिस्तान दुनिया के लिए खतरा बन चुका है। इसलिए भारत की इस चेतावनी को बहुत खास माना जाना चाहिए कि किसी भी उकसावे, आतंकी कार्रवाई को युद्ध ही माना जाएगा।

पाकिस्तान का बिखराव ही विकल्प

पाकिस्तान का होना सदैव का संकट है। इन टोटकों से वह सुधर जाएगा ऐसा मानना कठिन है। बावजूद इसके तात्कालिक तौर पर राहत जरूर है। किंतु अंततः पाकिस्तान का बिखराव ही संकट का समाधान है। पख़्तून, बलूच, सिंध की चुनौती पाकिस्तान के सामने ही हैं। इसके दो लक्ष्य होने चाहिए एक तो उसे दुनिया से अलग-थलग करना और दूसरा उन्हें ऐसी चोट देना कि पाकिस्तान सेना दुबारा हिमाकत न कर सके। फिलहाल ऐसा होता नहीं दिखता। पाकिस्तान आज भी एक अविश्वसनीय पड़ोसी और आतंकी संगठनों को पालने वाला देश है। बना रहेगा। हाल-फिलहाल तो पाकिस्तान की राजनीतिक शक्तियों ने बैकडोर कूटनीति से अमरीका और सऊदी अरब को आगे कर राहत तो प्राप्त कर ली है। भारत की सुरक्षा चुनौतियां आज भी बहुत कठिन हैं। थोड़ा और इंतजार कीजिए कि पाकिस्तान का रवैया क्या होता है। इतिहास को देखते हुए पाकिस्तान पर बहुत भरोसा करना ठीक नहीं। पाकिस्तान की सैन्य ताकत को ध्वस्त किए बिना शान्ति का सपना बहुत दूर की कौड़ी है।

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