भारत 30 सालों बाद करने जा रहा है, दुनिया का पहला एंटीबायोटिक पेनिसिलिन
90 के दशक तक भारत में निर्मित दवाइयों में एक जाना पहचाना नाम हुआ करता था पेनिसिलिन. पेनिसिलिन का मतलब, हर जख्म, हर मर्ज की दवा. फिर धीरे धीरे प्रोडक्शन प्लांट बंद होने लगे. 1998 के उस साल पता चला, पेनिसिलिन का प्रोडक्शन भारत में पूरी तरह बंद हो गया. अब खबर है कि भारत में पेनिसिलिन G का उत्पादन नए सिरे से शुरू होगा वो भी 2024 के जून महीने से. अब जो चर्चा है के बीच यह जानना दिलचस्प होगा कि इसका भारत में बनना क्यों बंद हुआ था, अब इसकी जरूरत क्यों पड़ी? उससे पहले समझिए, पेनिसिलिन इतनी खास क्यों है?पेनिसिलिन दरअसल एक एंटीबायोटिक है. इसका मतलब तो आज हर कोई जानता है. सर्दी बुखार से लेकर जख्म ठीक करने वाली दवाओं में सबसे पहले पहला नंबर इसी एंटिबायोटिक दावाओं का होता है. एंटीबायोटिक दो शब्दों एंटी और बायोस से मिलकर बना है, जिसका मतलब है एंटी लाइफ. यानी ये दवाएं बैक्टीरिया को नष्ट कर, उन्हें बढ़ने से रोकती हैं. मेडिसीन की दुनिया में एंटीबायोटिक्स की खोज सबसे क्रांतिकारी मानी जाती है. वो इसलिए क्योंकि इसके अविष्कार से पहले आम सर्दी-बुखार में भी इंसान की मौत हो जाती थी. चाकू का एक कट भी इंसान की जान लेने के लिए काफी था. इस जीवनरक्षक खोज का श्रेय जाता है साइंटिस्ट एलेक्जेंडर फ्लेमिंग को. साल 1928 का था और एंटीबायोटिक का नाम था पेनिसिलिन
पेनिसिलिन की खोज कैसे हुई
यह जानकर आपको हैरानी होगी कि इसकी खोज एक्सीडेंटल थी यानी एलेक्जेंडर खोज किसी और की कर रहे थे लेकिन एंटीबायोटिक की कर दी. 1918 में स्पेनिश फ्लू दुनिया के कई देशों में फैला था. इसी बीमारी से लोगों को बचाने के लिए साइंटिस्ट एलेक्जेंडर फ्लेमिंग फोड़े और गले में खराश सही करने वाली दवा की खोज कर रहे थे. इस बीच वो कुछ दिनों के लिए छुट्टी पर चले गए लेकिन लैब की खिड़की बंद करना भूल गए. छुट्टी से जब वो वापस आए तो देखा कि उनकी एक्सपेरिमेंटल प्लेट पर धूल के साथ फंगस जम गया है. थोड़ा गौर करने पर पाया कि फंगस से एक तरह का जूस निकल रहा है. ये जूस आसपास के बैक्टीरिया को मार रहा था. यहां से फ्लेमिंग को आइडिया सूझा और वो खराश सही करने वाली दवा को छोड़ फंगस पर एक्सपेरिमेंट करना शुरू कर देिए. कुछ सालों बाद उन्होंने इस फंगस जूस को ‛पेनिसिलिन का नाम दिया. इस तरह दवाओं में क्रांति लाने वाले एंटीबायोटिक्स की खोज हुई.पेनिसिलिन की खोज ने इलाज के तौर-तरीके बदल दिए. तब से अब तक 100 से ज्यादा तरह की एंटीबायोटिक दवाएं बन चुकी हैं, जिनका इस्तेमाल अलग-अलग बीमारियों के इलाज में किया जाता है.
प्रोडक्शन क्यों बंद करना पड़ा?
एक जानकारी पेनिसिलिन के बारे में और, यह एक नैरो स्पेकट्रम एंटीबायोटिक है- यानी कुछ ही बीमारियों के लिए ही इस्तेमाल होती है. जैसे-सेफलिस, रुमैटिक हार्ट डिसीज, डेंगू आदी. कई सालों तक इस एंटीबायोटिक्स को पब्लिक सेक्टर कंपनी हिंदुस्तान एंटीबायोटिक्स लिमीटेड यानी HAL बनाती थी. पर ग्रॉस मैनेजमेंट, करप्शन की वजह से धीरे धीरे भारत में प्रोडक्शन बंद हो गया. आज की डेट में 4 कंपनियां ही पेनिसिलिन का प्रोडक्शन करती है. इनमें से तीन तो चीन में ही स्थित है. ये हैं नॉर्थ चाइना फार्मास्युटिकल ग्रुप सेमीसिंटेक कंपनी लिमिटेड, सीएसपीसी फार्मास्यूटिकल्स ग्रुप लिमिटेड और जियांग्शी डोंगफेंग फार्मास्युटिकल कंपनी. चौथी कंपनी ऑस्ट्रिया में हैं जिसका नाम सैंडोज़ जीएमबीएच है.
2050 तक 10 लाख मौतों का अनुमान
पब्लिक हेल्थ एक्सपर्ट का मानना है कि भारत में कई डॉक्टर बिना विचारे एंटीबायोटिक दवाइयां देते हैं. आप किसी भी दुकान पर जाइए केमिस्ट से लेकर डॉक्टर तक पर्ची पर एंटीबायोटिक्स खाने को कह देते हैं. उदाहरण के लिए, एंटीबायोटिक्स फ्लू या सामान्य सर्दी जैसी वायरल बीमारियों का इलाज नहीं कर सकते. अक्सर एंटीबायोटिक दवाई डेंगू और मलेरिया से पीड़ित मरीजों को दी जाती हैं. एंटीबायोटिक का इस्तेमाल बैक्टीरिया को मारने के लिए किया जाता है. लेकिन अगर आप बार बार एंटीबायोटिक का इस्तेमाल करेंगे तो बैक्टीरिया उस दवा को समझ जाता है और उसके खिलाफ अपनी इम्युनिटी डेवलप कर लेता है. यानी खुद को और मजबूत बना लेता है. इसी कंडीशन को एंटीमाइक्रोबियल रेजिस्टेंस कहते हैं. शॉर्ट फॉर्म- AMR.
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 2019 में एमआर को सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए टॉप 10 खतरों में से एक में शामिल किया था. ये पब्लिक हेल्थ के लिए एक बढ़ता हुआ वैश्विक खतरा है. अनुमान है कि 2050 तक, इसके चलते 10 लाख मौतें हो सकती हैं. 2019 में दुनियाभर में 12 लाख से ज्यादा लोगों की जान गई थी. साल 2021 में जब कोविड अपने पीक पर था तब उस वक्त 17,534 कोविड संक्रमित लोगों पर ICMR ने रिसर्च की थी. रिपोर्ट के मुताबिक आधे से ज्यादा ऐसे लोगों की मौत हो गयी जिन्हें एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस इंफेक्शन था. हैरत की बात है कि इतनी दिक्कतों के बाद भी जिन एंटीबायोटिक दवाओं का इस्तेमाल सिर्फ बहुत गंभीर बीमारी के लिए किया जाना चाहिए भारत में उनका इस्तेमाल लगभग 75 फीसदी किया जाता है.
चीन पर कम होगी निर्भरता
स्वास्थय मंत्री मनसुख मांडविया ने घोषणा कि अब आत्मनिर्भर भारत के तहत हम देश में ही पेनिसिलिन का प्रोडक्शन करेंगे. इसे PLI के तहत बनाया जाएगा. PLI का मतलब है- प्रोडक्शन लिंक्ड इन्सेन्टिव स्कीम. ये भारत सरकार की एक पहल है, जिसका मकसद विदेशी और देसी कंपनियों को देश में प्रोडक्शन बढ़ाने में मदद करना है. सरकार इसके तहत 4-6 फीसदी इन्सेन्टिव कंपनियों को देती है. मनसुख मांडविया ने कहा कि थोक दवाओं के लिए पीएलआई योजना से आयात निर्भरता कम होगी और सप्लाई चेन में लचीलापन आएगा. ब्रिटेन के स्कॉटलैंड में नेशनल हेल्थ सर्विस में काम करने वाले साइंटिस्ट डॉ. अविरल वत्स सरकार के इस फैसले को स्वागत योग्य बताते हैं.