मेरे गुरुवर : विद्यार्थियों को तराशने की कला में निपुण हैं ललिता चंद्रा
खरसिया। नमन है उन गुरुजनों को जो नन्हे-मुन्ने बच्चों को तराश कर मेधावी विद्यार्थी बनाते हैं। उच्च कक्षाओं को पढ़ाना तो आसन होता है, वहीं नटखट बच्चों को विद्यार्थी बनाना वस्तुतः शिक्षक की कुशलता को दर्शाता है।
स्वामी आत्मानंद इंग्लिश मीडियम स्कूल में प्राथमिक वर्ग की हेडमास्टर शिक्षिका ललिता चंद्रा ना सिर्फ पूरी लगन से छोटे-छोटे बच्चों को पढ़ाती हैं, वरन् प्रशासनिक कार्यों में भी उन्हें वही निपुणता हासिल की है।
स्नातक के तुरंत बाद उन्होंने प्राइवेट स्कूलों में उच्च कक्षाओं को शिक्षित करना प्रारंभ कर दिया था। वहीं 2005 से वे शासकीय प्राथमिक शाला में अध्यापनरत हैं। ऊंची कक्षाओं को पढ़ाने के पश्चात प्राथमिक विद्यालय में छोटे-छोटे बच्चों को संभालना किसी चुनौती से कम नहीं होती।
अपनी ही मस्ती में मगन छोटे-छोटे बच्चों को शांत करवाना, विषयवस्तु की ओर उनका ध्यान केंद्रित करवाना, छोटे-छोटे बच्चों का आपसी लड़ना-झगड़ना, कक्षा में सो जाना, नन्हे-मुन्ने बच्चों का कुछ भी ना बोलना या गतिविधियों में भाग न लेने से डरना, उन्हें सामान्य बच्चों जैसा बनना, वस्तुतः एक चुनौती ही तो है। इस चुनौती को स्वीकार करते हुए ललिता चंद्रा ने पूरी लगन और परिश्रम के साथ इन बच्चों के साथ घुल-मिलकर इन्हें पढ़ा-लिखा कर उच्च कक्षाओं में भेजने का जिम्मा लिया।
ललिता चन्द्रा कहती हैं, जहां समस्याएं होती हैं वहीं समाधान भी होता है, बस जरूरत है उसे ढूंढने की। बच्चे ही तो हैं जो शिक्षक को विद्यालय से जोड़ते हैं। उनके उज्जवल भविष्य को ध्यान में रखते हुए शिक्षक अपना कर्तव्य निभाते हैं और उन्हें समाज में आत्मनिर्भर बनाने हेतु प्रेरित करते हैं।
ऐसे में ललिता चंद्रा द्वारा सर्वप्रथम बच्चों के मन से भय को निकलने का कार्य किया जाता है और विभिन्न प्रकार के खेलकूद के द्वारा उन्हें पढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।
विषय बोझिल न लगे, इसके लिए बीच-बीच में रोचक कहानियां गीत और कविताओं के माध्यम से बच्चों का मनोरंजन भी करती हैं, वहीं प्रतियोगिताओं में बच्चों को भाग लेने के लिए प्रेरित भी करती हैं। यही वजह रही है कि जहां-जहां उन्होंने अध्यापन किया, वहां-वहां पुरस्कृत भी हुई हैं और अब भी पूरी लगन के साथ स्वामी आत्मानंद स्कूल में अध्यापनरत हैं।