वक्त बदल जाता है तो अच्छा यही रहता है कि बरसों से चली आ रही परंपरा भी बदल दी जाए। कई जगह वक्त कितना भी बदल जाए, पंरपरा नहीं बदलती है या कुछ लोग चाहते ही नहीं है कि परंपरा बदल दी जाए।ऐसे लोगों को परंपरा से बड़ा मोह होता है।
उनकी सोच रहती है कि इतनी पुरानी परंपरा है, इसे कैसे बदल दें, यह पुरानी परंपरा ही तो हमारी पहचान है। यह परंपरा ही न रहे तो हमे कौन पहचानेगा, कौन सलाम करेगा, कौन हमसे डरेगा।जैसे राजनीति कितनी भी बदल जाए, उसकी परंपरा को कुछ नेता बनाए रखते हैं। राजनीति की पुरानी परंपरा है भ्रष्टाचार करना। कुछ लोग इस परंपरा को बनाए रखते हैं।इसी तरह पुलिस की परंपरा है पिटाई करना। पुलिस वाले मानते हैं और पुलिस को जानने वाले भी मानते हैं कि पीटना पुलिस वालों को अधिकार है।आजादी के इतने सालों बाद भी कुछ पुलिस वाले इस परंपरा को बनाए रखे हुए हैं।
इस परंपरा के लिए वे लोग भी दोषी है जो आए दिन अपराध होते हैं तो यही कहते रहते हैं कि शहर में या राज्य में पुलिस का डर नहीं रह गया है। ऐसे में पुलिस को साबित करना पड़ता है कि उनका खौफ पहले भी था और आज भी है।कुछ दिन पहले गुजरात के सूरत जिले के डिंडोल क्षेत्र में एक पुलिस इंस्पेक्टर ने कार में मित्रों के साथ एडवोकेट को ही लात मार दी। सामान्य आदमी होता तो वह डर जाता,मान लेता पुलिस वाले को ऐसा करने का अधिकार है। पुलिस, पुलिस होती है तो एडवोकेट भी एडवोकेट होता है।
मामला गुजरात हाईकोर्ट पहुंच गया तो हमेशा की तरह पुलिस इंस्पेक्टर ने सोचा माफी मांग लेने माफी मिल जाएगा, इंस्पेक्टर के ग्रह नक्षत्र खराब थे सो जज ने माफ करने से मना करते हुए कहा कि आज माफ कर दिया १० और पुलिस इंस्पेक्टर ऐसा ही करेंगे।कोई पुलिस वाला मुझे भी लात मार सकता है और जज ने पुलिस इंस्पेक्टर पर लात मारने पर तीन लाख का जुर्माना लगा दिया।
कुछ लोग मान सकते हैं कि जज ने अच्छा किया, इससे पुलिस सुधर जाएगी, लेकिन पुलिस को जानने वाले इतने आशावादी नहीं होते हैं।वह जानते हैं कि कुत्ते की पूंछ तो सीधी हो सकती है लेकिन पुलिस वाले सीधे नहीं हो सकते। वह तो पुलिस में भर्ती ही इसलिए होते हैं कि गाली देने और पीटने का शौक इस लाइन में पूरा हो सकता है।कुछ लोगों को लगता है कि वह गाली देते हैं, पीटते हैं लेकिन यह भी सच है कि वह तो अपना शौक पूरा करते रहते हैं।
कभी कभी शौक पूरा करते करते पिटाई का डोज ज्यादा हो जाता है तो किसी की मौत भी हो जाती है। पुलिस के लिए पिटाई दवा की तरह होती है,जैसे दवा का डोज ज्यादा होने पर मरीज स्वस्थ होने की जगह मर जाता है उसी तरह पिटाई का डोज ज्यादा होने पर आरोपी ईश्वर को प्यारा हो जाता है।
माना जाता है कि कवर्धा जिले के लोहारीडीह मामले में भी ऐसा ही हुआ।पिटाई का डोज ज्यादा हो गया तो एक आरोपी की मौत हो गई। साय सरकार ने भी वही किया जो और किसी पार्टी की सरकार रहती तो करती।एएसपी विकास कुमार को सस्पेंड कर दिया है,इसके साथ पीड़ित के परिजन को दस लाख रुपए का मुआवजा देने की घोषणा की गई है।
साथ ही गृहमंत्री ने कहा है कि घटना के लिए जो भी दोषी हैं उन पर कानूनी कार्रवाई की जाएगी। सरकार जो कर सकती थी, उसने कर दिया। विपक्ष इतने में संतुष्ट हो जाए तो काहे का विपक्ष। उसे तो राजनीति करने का मौका मिल गया है।गृहमंत्री को निशाने पर लेने का मौका मिल गया है,इसलिए कांग्रेस ने गृहमंत्री से इस्तीफा मांगा है।
सरकार को नाकारा साबित करने का मौका मिल गया है। वह तो करेंगे ही, भले ही कितनी भी बड़ी घटना हो जाए कांग्रेस सरकार के गृहमंत्री ने भले ही इस्तीफा न दिया हो लेकिन बड़ी घटना हो जाए तो भाजपा के गृहमंत्री काे इस्तीफा दे देना चाहिए।
इस मामले में विरोध जताने के लिए कांग्रेस ने २१ को छत्तीसगढ़ बंद कराने का फैसला किया है। कांग्रेस के छत्तीसगढ़ बंद से यदि पुलिस हिरासत में मौत का सिलसिला रुक जाता, पुलिस पीटना छोड़ देती तो राज्य की जनता भी कांग्रेस के साथ बंद करती।
सब चाहते हैं कि वक्त बदल गया है,पुलिस की पूछताछ व जांच की तरीका पहले से ज्यादा आधुनिक हो गया है। इसलिए बरसों पुराने तरीकों का अब पुलिस को इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। जनता तो ऐसा चाह सकती है। पुलिस भी ऐसा चाहे और करे तो कोई बात बने।
जनता तो चाहती है कि लोहारीडीह मामले के आरोपी की पुलिस हिरासत में पिटाई से मौत का मामला आखिरी मामला हो, इसके बाद किसी की पुलिस हिरासत में मौत न हो।यह संभव है इसके लिए जरूरी है कि सरकार व पुलिस विभाग को ही कुछ करना होगा।