आदमी जहां भी रहे, उसे अपने होने का एहसास अकेले और समूह के रूप में कराना पड़ता है। वह अपने होने का एहसास विरोध और अपनी एकजुटता से हमेशा कराता रहा है। चाहे वह अपने देश में रहे या किसी दूसरे देश में रहे। यदि वह चुप रहता है, सहता जाता है तो उसे कमजोर समझा जाता है, उसकी उपेक्षा की जाती है, उसकी परवाह नहीं की जाती है।
इसलिए जब अपनी सुरक्षा व अस्तित्व का सवाल पैदा हो जाए तो आदमी को विरोध के लिए सड़क पर उतरना पड़ता है और बताना पड़ता है कि हमारे साथ जैसा व्यवहार किया जाएगा हम भी वैसा ही व्यवहार करेंगे। हमें भीड़ के जरिए डराने, भगाने,मारने का प्रयास किया जाएगा तो हम भी भीड़ के जरिए बताने को मजबूर हो जाएंगे कि हमे डराकर भगाया नहीं जा सकता। हमें डरा कर अपनी बात नही मनवाई जा सकती। हम जिस देश में रहते हैं, वह देश हमारा भी है, हम यहां के नागिरक है,इसलिए हमारे भी नागरिक होने के नाते अधिकार है और यह हमसेे कोई छीन नहीं सकता।
बांग्लादेश में हिंदुओं को आखिर अपनी ताकत,अपनी एकजुटता इसीलिए दिखानी पड़ी कि अब पानी सिर के ऊपर आ चुका था, अब तो सुरक्षा के लिए जरूरी हो गया था कि अपनी ताकत दिखाई जाए। अब तो अपने अस्तित्व रक्षा के लिए जरूरी हो गया था कि ताकत दिखाई जाए। आजादी के बाद पहली बार किसी देश में हिदुओं ने अपनी सुरक्षा के लिए ताकत दिखाई है, आजादी के बाद पहली बार किसी देश में हिदुओं ने अपने अस्तित्व को बचाने के लिए ताकत दिखाई है और इसी का परिणाम है कि बांग्लादेश के गृह मामलों के सलाहकार सखावत हुसैने ने हिंदुओं से माफी मांगी है कि वह उनकी रक्षा करने में नाकाम रहे है।बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के प्रमुख सलाहकार प्रो, मोहम्मद यूनुस ने हिंदुओं समेत सभी अल्पसंख्यकों को भरोसा दिलाया है कि उनकी सुरक्षा की जाएगी,हमला करने वालों को दंडित किया जाएगा।
बांग्लादेश में हिंदुओं पर हमले के विरोध में जिस तरह भारत सहित कई देशों में विरोध प्रदर्शन हुए, वह भी शुभ संकेत है कि हिंदू समाज भारत में जिस तरह जाग रहा है, उसी तरह विदेशों में अपनी सुरक्षा, अपने अस्तित्व को बचाने के लिए सजग हो रहा है, एकजुट हो रहा है, अपनी ताकत दिखा रहा है। विरोध में सड़क पर उतर रहा है। हिंदू समाज को विश्व के सबसे सहिष्णु समाज होने के कारण उसे कमजोर समझ लिया जाता है, वह अपने देश में विदेश में अब तक बहुत कुछ सहन करता रहा है। आए दिन विदेशों से खबरें आती हैं हिंदू लोगों के साथ अत्याचार किया जा रहा है। उसका कहीं कोई विरोध नही होता था। बांग्लादेश के साथ ही पाकिस्तान में भी आजादी के बाद से हिंदुओ पर अत्याचार किया जाता रहा ताकि वह देश छोड़कर चले जाएं। इसका विरोध हिंदुओं ने कभी इस तरह नहीं किया जिस तरह अगस्त २४ मे किया गया है। अगर ऐसा ही विरोध किया गया होता तो आज हिंदू भी पाकिस्तान व बांग्लादेश में २०-३० प्रतिशत होते।
आज बांग्लादेश में ८-९ प्रतिशत हिंदुओं ने जैसा विरोध किया, इससे ज्यादा विरोध तो पहले भी कर सकते थे लेकिन देर से ही सही बांग्लादेश के हिंदुओं ने विरोध, एकजुटता का जो रास्ता दिखाया है, उसे अब भारत सहित विदेशों मे रहने वाले हिदुओं को याद रखना चाहिए और जब भी उन पर हमला, उनके साथ अत्याचार हो तो वह पुरजोर विरोध करें। उनकी बात उसी तरह सुनी जाएगी जैसी बांग्लादेश मे सुनी गई है।अगस्त का महीना हमारे लिए आजादी का महीना भी है और देश के बंटवारे का भी महीना है। अगस्त २४ में पहली बार हिंदुओं को अपनी ताकत का एहसास हुआ है कि वह भी विरोध कर सकते हैं, वह भी सड़क पर उतर सकते है। पहली बार उन्होंने एक समुदाय को एहसास कराया है कि अब वह उन्हें डरा कर नहीं भगा सकता ।
यह एहसास आजादी के बाद पैदा हो गया होता तो आज पाकिस्तान व बांग्लादेश में हिंदुओं की ताकत और ज्यादा होती। कश्मीर में आज वह अल्पसंख्यक नहीं होते। अगस्त २४ में पहली बार देश के लोगों ने देश विरोधी ताकतों,उनके इशारे पर चलने वालों को हिंडनबर्ग मामले में भी एहसास करा दिया कि वह देशहित को समझते हैं। देश को नुकसान पहुंचाने वालों को पहचानते हैं।अब हिंडनबर्ग को भी यह बात समझ आ गई होगी कि एक बार भारत के लोगों को गुमराह किया जा सकता है लेकिन बार-बार नहीं। देश के कुछ राजनीतिक दलों के नेताओं को यह बात समझ नही आई है, जनता उन्हें भी आने वाले दिनों में अच्छे से समझा देगी कि कोई भी उन्हें बार बार गुमराह नहीं कर सकता।२४ के अगस्त महीने का यही संदेश है कि हिंदुओं को एकजुट रहना है और देशविरोधियों का खुलकर विरोध करना है।