चीन आखिर क्या चाहता है… अरुणाचल प्रदेश पर बार-बार क्यों करता है दावा
चीन:- एक बार फिर अरुणाचल प्रदेश के कुछ इलाकों का नाम बदलकर चीन ने नए विवाद को जन्म दे दिया है. चीन के नागरिक मामलों के मंत्रालय ने चौथी सूची जारी करते हुए 30 स्थानों के नाम बदले हैं. चीन ने अप्रैल 2023 में चीनी अक्षरों, तिब्बती और पिनयिन का उपयोग करके 11 स्थानों का नाम बदला था, यह नामों की तीसरी सूची थी. नामों की पहली सूची 2017 में जारी की गई थी, जबकि 15 स्थानों की दूसरी सूची 2021 में जारी की गई थी. चीन की तरफ से अभी तक कुल बदले 30 नामों को 1 मई 2024 से प्रभावी होने का आदेश जारी किया गया है. भारत की तरफ से इस बारे में विदेश मंत्रालय ने साफ शब्दों में कहा कि राज्य में मनगढंत नाम रखने से वास्तविकता नहीं बदलेगी कि यह भारत का अभिन्न अंग है. भारत और चीन दोनों ही एक ही समय आजाद हुए थे और तभी से लेकर दोनों देशों के बीच इस हिमालय रीजन को लेकर विवाद जारी है. इसको जानने के लिए हमें करीब 100 साल पीछे जानना पड़ेगा, जिसके बाद इंडिया-चाइना विवाद की नींव पड़ी. हालांकि इसकी शुरुआत आजादी से पहले हो चुकी थी, जब 1914 में अंग्रेजों ने शिमला कांफ्रेंस के नाम से एक बैठक बुलाई थी जिसका मकसद तिब्बत और ब्रिटिश इंडिया के बीच सीमा को तय करना था.
भारत की संप्रभुता की मान्यता दुनिया में है
चीन काफी पहले से पूरे अरुणाचल प्रदेश पर अपना दावा जताता रहा है और उसे दक्षिणी तिब्बत बताता है. हालांकि अरुणाचल प्रदेश के साथ भारत की संप्रभुता की मान्यता पूरी दुनिया में स्थापित है. अंतरराष्ट्रीय मानचित्रों में भी अरुणाचल प्रदेश भारत के हिस्से के तौर पर देखा जाता है. विदेशी मीडिया में भी इस बात को लेकर कभी किसी तरह की कोई कंफ्यूजन नहीं रही, लेकिन चीन तिब्बत के साथ-साथ अरुणाचल प्रदेश पर भी दावा करने की कोशिश करता रहा है.
1950 के दशक के आखिर में तिब्बत को अपने में मिलाने के बाद चीन ने अक्साई चिन के 38000 वर्ग किलोमीटर इलाके पर कब्जा कर लिया था, यह इलाका लद्दाख से जुड़ा थे. यहां पर चीन ने नेशनल हाईवेज 219 बनाया, जो उसके पूर्वी प्रांत शिनजियांग को जोड़ता है और भारत इसे चीन का अवैध कब्जा मानता है. वैसे तो चीन पूरे अरुणाचल प्रदेश पर अपना दावा ठोकने की कोशिश करता है, लेकिन उसकी खास दिलचस्पी तिब्बत और भूटान की सीमा से लगे हुए तवांग में सबसे ज्यादा है, जहां भारत का सबसे विशाल बौद्ध मंदिर है.
3 क्षेत्रों में बंटा है चाइना-इंडिया बॉर्डर
चाइना-इंडिया बॉर्डर्स को तीन क्षेत्रों में विभाजित किया गया है. पहला पश्चिमी क्षेत्र है जोकि भारत की तरफ लद्दाख और चाइना की तरफ तिब्बत और शिनजियांग स्वायत्तता रीजंस के बीच है. दूसरा मध्य क्षेत्र है जो भारत की तरफ उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश जबकि चाइना की तिब्ब्त स्वायत्तता क्षेत्र के बीच है और तीसरा पूर्वी क्षेत्र में हैं जोकि भारत की तरफ अरुणाचल प्रदेश और चीन की तरफ तिब्बत स्वायत्त क्षेत्र है. इसे जिसे लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल या एलएसी के रूप में जाना जाता है. यह बॉर्डर 1962 के सिनो इंडियन वॉर के बाद दोनों देशों के बीच केवल एक अनौपचारिक संघर्ष विराम रखने के रूप में मौजूद थी.
इसके बाद एलएसी को 1993 और 1996 में हस्ताक्षरित चाइना इंडिया एग्रीमेंट्स में कानूनी मान्यता प्राप्त हुई, जिन्हें बॉर्डर पीस एंड ट्रैंक्विलिटी एग्रीमेंट 1993 और एग्रीमेंट ऑन मिलिट्री कॉन्फिडेंस बिल्डिंग मेजर्स 1996 के रूप में जाना जाता है. इसके साथ ही दोनों देशों ने इस समझौते में एलएसी का सम्मान करने की सहमति व्यक्त की थी. हालांकि यह एलएसी चाइना इंडिया सीमा विवाद में प्रत्येक देश द्वारा दावा की जाने वाली सीमाओं से अलग है.
चीन की रणनीति को विस्तार से समझें
इस कारण भारत के लिए यह एक महत्त्वपूर्ण रणनीतिक क्षेत्र बन जाता है. जोकि दूसरी तरफ चाइना के लिए एक अनुकूल स्थिति नहीं है. यदि चाइना भविष्य में तवांग पर आक्रमण करने में सफल होता है तो यह रास्ता चाइना को भारत के सिलीगुड़ी कॉरिडोर या चिकनस नेक तक पहुंचने में एक आसान रास्ता भी प्रदान करेगा. सिल्लीगुड़ी कॉरिडोर भूमि का एक नैरो स्ट्रेच है, जो भारत को अपने ईस्टर्न राज्यों से जोड़ता है और इस वजह से यह भी एक रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण केंद्र बन जाता है.
यदि हम भौगोलिक निकटता से देखें तो तवांग एक लैंड लॉक्ड रीजन भी है. इसके नॉर्थ में तिब्बत ऑटोनोमस रीजन, साउथ वेस्ट में भूटान और ईस्ट में अरुणाचल प्रदेश के वेस्ट कमिंग जिला से अलग हुई सेला पास है और इस प्रकार यहां एक ट्राई जंक्शन बनता है. तवांग पर कब्जा करने के लिए चाइनीज सोल्जर्स को सेला पास तक पहुंचना होगा. सेला पास आने के लिए उन्हें तवांग में स्थित येंगजी क्षेत्र से होकर आगे आना होगा. इसके अलावा येंगजी में 17000 फीट ऊंची एक चोटी है, यह शिखर वर्तमान में भारत के नियंत्रण में आता है, जो बॉर्डर के दोनों तरफ एक शानदार दृश्य प्रदान करता है और इसीलिए भारत फायदे की स्थिति में है.