क्या है अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की स्थिति आज के भारत की क्या है रणनीति एवं विश्वपटल पर भूमिका ….
प्रतिपल परिवर्तन के इस दौर में प्रत्येक देश या तो वह लोकतंत्र हो या फिर राजतन्त्र अपने आप को सर्वश्रेष्ठ बनाने में लगा हुआ है जो अच्छा है वह बेहतर बनना चाहता है और बेहतर, सर्वश्रेष्ठ बनना…. और चाहे भी क्यूँ ना यदि इस प्रतिस्पर्धा में पीछे हुए तो अस्तित्व पर भी खतरा बन सकता है वर्तमान की स्थितियां इसकी साक्षी है या वो इस्राइल-फ़िलीस्तीन के बीच का युद्ध हो या फिर रूस-यूक्रेन के बीच दोनों की लड़ाई अपने-अपने अस्तित्व के लिए ही है…
तो पाठकगण आज हम तथ्यों के माध्यम से तर्क लगाकर यह जानने का प्रयास करेंगे कि वर्तमान की स्थिति को देखते हुए भारत की क्या दशा है और उसकी दिशा किस ओर है….
आज से पहले जब 1945 में जब द्वितीय विश्व युद्ध का दौर अपने आखिरी चरम पर आ पहुचा लेकिन किस कीमत पर? अंततः मानव ही मानव का दुश्मन बन बैठा जब अमेरिका ने जापान पर परमाणु बम गिराया करीब डेढ़ लाख लोगों ने अपनी जान गवां दी और उसका प्रभाव आज भी वहा है और दुनिया भर के देशो में त्राहि मचा दी लेकिन हम आपको यह जानकारी क्यों बता रहे है… क्योंकि आज 21वीं सदी में वर्तमान मे दुनिया की सबसे बड़ी ताकत होने के मायने अब बदल चुके है अब पहले की तरह अस्त्र-शस्त्र से कोई देश अपने आप को बड़ा नहीं कह सकता आज बहुत से देशों के पास परमाणु हथियार है… पाकिस्तान तो हमें अपने नाश्ते में खाने में परमाणु की धमकी देता है… लेकिन उसकी स्थिति देख यह बात भी हास्यापद है इस पर कबीर साहेब का एक दोहा भी उचित लगता है,मूर्ख को समझावते, ज्ञान गाँठि का जाय।कोयला होय न ऊजरा, सौ मन साबुन लाय। लेकिन द्वितीय विश्व युद्ध के परिणाम से सभी अब यह बात समझ चुके है युद्ध केवल विनाश का कारण बनता है… तो अब क्या है नयी ताकत के मायने ?वह है economy याने की अर्थव्यवस्था… आज के युग में यही अर्थव्यवस्था है जो किसी भी देश की शक्ति की निर्णायक बन रही हैं क्योंकि आज कोई भी देश एक दूसरे से सीधे युद्ध करने से हिचकिचाता है जैसा कि हमने बताया कि अब बहुत से देश परमाणु लेस है तो आमने-सामने होकर युद्ध करना याने स्वयं के विनाश को आमंत्रण देना…. तो अब अपनी अर्थव्यवस्था को मजबूत करना ही अपनी शक्ति का प्रमाण देना है भले ही युद्ध ना हो लेकिन यह दिखाना है कि हम बिलकुल तैयार है…. अब सवाल ये कि कौन है विश्व की सबसे बड़ी ताकत? तो वर्तमान मे उसका जवाब है अमेरिका… जी हाँ अमेरिका की अर्थव्यवस्था 25 ट्रिलियन के आसपास आती वहीं द्वितीय स्थान पर आता है चीन जिसकी अर्थव्यवस्था लगभग 18 ट्रिलियन की हो चुकी है भारत का स्थान 5वे नंबर पर आता है हमारी अर्थव्यवस्था 3.5 ट्रिलियन की है… हमारी सबसे बड़ी प्रतिस्पर्धा किसी से है तो वो है चीन….. इसके भी मुख्यतः तीन कारण है
i) शेष जितनी भी बड़ी ताकतें हैं उनके भारत से बहुत अच्छे सम्बंध है या वो साँस्कृतिक संबंध हो, ऐतिहासिक हो या फिर आर्थिक संबंध हो….
ii) दूसरा सबसे मुख्य कारण हैं चीन और हमारे देश की बीच की सीमा…चीन की नज़रे तिब्बत के बाद अब हमारे ओर बढ़ रही है…
iii)चीन की बढ़ती आबादी उसके लिए घातक साबित हो रही है उनके पालन पोषण के लिए कृषि उत्पादन चाहिए जिसके लिए वहा पर्याप्त पानी नहीं है वह मुख्यतः दो ही नदियों पर आश्रित है तिब्बत पर कब्जा करने के भी यही मुख्य कारण थे।
चीन गरीब देशो को अपने कर्ज के जाल में फंसा कर अपने अधीन कर उनसे कठपुतली की तरह काम निकलवाता है…. चीन की अभी भारत के विरुद्ध सबसे खतरनाक नीति ‘स्ट्रिंग ऑफ पर्ल’ जिसमें वह उन भारत के पड़ोसी देशों जो चीन के कर्ज में है उनके पोर्ट में अपना बेस बना रहा है और भारत को समुद्र के रास्ते तीनों ओर से घेर रहा हैं…. लेकिन भारत के पास वो छड़ी है जिससे वह इस साँप के सीधे फन को पकड़ सकता है.. वह है मल्लका जलसंधी यह वहीं जगह जहां से चीन का 60 se 90 प्रतिशत तक का व्यापार होता है…. ठीक इसी के पास ही विद्यमान है हमारे अंडमान का पोर्ट ब्लेयर जहां भारत की पहली ऐसी सेना जहाँ थल, जल एवं वायु तीनों अपनी सेवाएं दे रहे हैं यदि चीन कोई भी गतिविधि करता है तो उसे उसका जवाब दे दिया जाएगा…. लेकिन कहीं ना कहीं हम अभी चीन से पीछे है भारत को अपनी तैयारी और भी मजबूत करनी होगी…
क्या है भारत की युद्ध नीति…
भारत अभी नहीं बल्कि अपने इतिहास से ही प्रथम प्रहार न करना एवं अहिंसा को अपनाते हुए बातचीत से समझौता करने में विश्वास रखता है
रामायण काल मे श्रीराम ने अंगद को भेजा ताकि बातचीत कर रावण, श्री राम के शरणागत हो जाए और माता सीता को ससम्मान लौटा दे… महाभारत में भी श्री कृष्ण ने संधि प्रस्ताव पांडवों की ओर से रखा था…यह हमारे इतिहास में रहा है कि हम जोश में होश नहीं खोते… लेकिन आज हम देख रहे है कि ड्रैगन हमें बार बार उकसाने की कोशिश करता रहता है चाहे वह अक्साई चीन या फिर अरुणाचल प्रदेश का मामला हो… भारत की भौगोलिक संरचना भी इस प्रकार है कि वह चाह कर भी हमसे युद्ध सीधे तौर पर युद्ध नहीं कर सकता। लेकिन भारत को अभी और भी मजबूत बनने एवं आर्थिक विकास की आवश्यकता है जिसमें उसका प्रयास जारी है क्या आपने कभी सोचा कि उत्तर भारत की सड़के इतनी चौड़ी क्यों बनाई जा रही है? आप स्वयं विचार कीजिए…
चीन ने भारत के पड़ोसी देशों को तो अपने अधीन कर लिया हो लेकिन विश्व स्तर पर देशों में भारत का डंका बज रहा है चाहे वह अमेरिका से संधि, रूस, जापान, फ्रांस या अन्य विभिन्न देशों से जो विश्व पटल पर सबसे ऊपर है… भारत ना ही केवल बड़े देश बल्कि छोटे देशों से भी मित्रता निभाता है और हर सहायक मदद करने को तैयार है जैसे अफ्रीका के देशों की भारत दशकों से मदद करता आ रहा है…. प्रधानमंत्री की भूमिका इसमे अहम है भारत ने पहली बार अपनी शक्ति का प्रदर्शन तब किया जब 1971 मे भारत पाकिस्तान युद्ध में पाकिस्तान ने विश्व का सबसे बड़ा, विश्व युद्ध से भी बड़ा आत्मसमर्पण (सैनिक संख्या में) भारत के सामने किया….
आज भी भारत की विदेश नीति कारगर है और सभी से अच्छे सम्बंध बनाकर चल रही है…. बाकी देशों के अपेक्षा भारत की जनसंख्या भी उसके लिए उपयोगी साबित हो रही है क्योंकि भारत में 15 से 64 वर्ष के आयु के बीच लगभग 60 प्रतिशत है चुनौती है तो इस वर्ग को कौशल और शिक्षा प्रदान करना यदि ये दोनों पूर्ण हो जाते है तो हमारे देश की उन्नति कई गुना बढ़ जाएगी आज के इस युग मे औद्योगिक क्षेत्र ने इतना विकास कर लिया है कि यह दोनों कार्य भी मुश्किल नहीं है बस जरूरत है तो सही परिपालन कि तह तक पहुचाने की. अब यह सरकारों का काम करने के तरीके पर है ।कि वह कितनी दूरदृष्टि और पारदर्शिता अपने कार्यो में रख सकती है भविष्य किसने देखा है लेकिन हमें वर्तमान सरकार की जो कल्पना है 2047 तक विकसित भारत उसे पूरा करने में अपनी संपूर्ण भूमिका निभानी है लेकिन यह तब ही सम्भव जब सभी में भाइचारे की भावना हो आज साम्प्रदायिक हिंसा, क्षेत्रवाद, इतनी बढ़ चुकी है जिसका केवल एक कारण है अज्ञानता… राष्ट्रवाद इन सभी से ऊपर है आज का युवा ही कल का भारत है उन्हें यह बात सबसे पहले समझनी है किसी एक से राष्ट्र निर्माण नहीं होता सभी को साथ लेकर चलना है स्वामी विवेकानंद जी ने भी कहा है वसुधैव कुटुम्बकम… इसमें मीडिया की भी अहम भूमिका है मीडिया का काम पहले “क्या हुआ” यह बताना था और आज “क्या हो सकता है” भूत से भविष्य पर… जो कि सार्थक प्रतीत नहीं होता… हम आशा करते है कि आपको इस स्व लेख कुछ जानकारी मिली होगी।