हर आदमी की स्वाभाविक इच्छा होती है कि देश,राज्य,शहर,वार्ड,परिवार में उसे उसके किसी अच्छे काम के लिए याद किया जाए।जो बड़े लोग होते हैं, बड़े पद पर होते हैं, उनको लगता है कि इतने बड़े पद पर रहने का क्या मतलब है यदि इस पद पर रहते ऐसा काम नहीं किया जिसके लिए भविष्य में उनको याद किया जाए, देश के इतिहास मे याद किया जाए। जिन लोगों को बड़े बड़े मंच पर बोलने के लिए बुलाया जाता है, वह संगठन के इतिहास में याद किए जाने के लिए कुछ न कुछ ऐसा बोलते हैं कि लोग उनकी तारीफ करते हैं देखो इन आदमी ने बड़े पद पर रहते हुए देश व विश्व के कल्याण के लिए कितनी अच्छी बात की है।
संगठन के सौ साल के इतिहास इन आदमी ने बड़े पद पर रहते हुए ऐसी बात कह दी है जो उनसे पहले के पदाधिकारी सौ साल में कहने की हिम्मत नहीं कर सके।एक बयान से कोई बड़ा आदमी बन जाता है, एक बयान के कारण कोई आदमी इतिहास में अपना नाम दर्ज करा देता है। बहुत कम लोग ऐसे होते हैं जो ऐसा काम करते हैं जिसकी मित्र लोग तारीफ न करें लेकिन शत्रु लोग तारीफ करें।यह भी प्रशंसा पाने का एक अलग तरीका होता है। क्योंकि मित्र तो तारीफ करते ही है, यह कोई बड़ी बात थोड़ी न है। शत्रु भी आपकी तारीफ आपके काम के लिए करे तो यह बड़ी बात होती है,इतिहास में ऐसे लोगों को याद किया जाता है कि उनकी तारीफ तो उनके शत्रु भी किया करते थे।
आरएसएस के सरसंघचालक मोहन भागवत ने ऐसा ही बयान दिया है कि उनके शत्रु भी उनके सराहना कर रहे है, उनकी आलोचना करने वाले भी उनकी सराहना कर रहे हैं। उनके घोर विरोधी भी सराहना कर रहे हैं।उन्होंने पुणे में भारत और विश्व गुरु कार्यक्रम में देश में मंदिर-मस्जिद विवाद फिर से उभरने पर चिंता जताते हुए कहा है कि हर दिन नया मामला(विवाद)उठाया जा रहा है,इसकी अनुमति कैसे दी जा सकती है।भारत को यह दिखाने की जरूरत है कि हम साथ में रह सकते हैं।उन्होंने कहा कि अयोध्या में मंदिर बन जाने के बाद कुछ लोग सोचते हैं कि ऐसे मुद्दे उठाकर वह हिंदुओं के नेता बन सकते हैं।यह स्वीकार्य नहीं है।उन्होंने कहा कि भक्ति के सवाल पर बात करें तो राम मंदिर होाना चाहिए और हुआ।पर रोज नए मुद्दे उठाकर घृणा दुश्मनी फैलाना उचित नहीं है।
उन्होंने कहा रामकृष्ण मिशन में क्रिसमस मनाया जाता है। केवल हम ऐसा कर सकते हैं, क्योंकि हम हिंदू हैं।उन्होंने कहा हम लंबे समय से सद्भावना से रह रहे हैं। दुनिया काे सद्भावना देना चाहते हैं तो माडल बनाने की जरूरत है।मोहन भागवत का कहना है कि इन दिनों जो मंदिर मस्जिद विवाद सामने आ रहे है, उससे देश का भला नहीं होने वाला है। देश का भला तो सद्भाव के रहने से होगा। भारत को विश्व गुरु बनना है तो देश के लोगों को सद्भाव से रहकर दिखाना होगा। इससे पहले भी मोहन भागवत हिंदू मुसलमान का डीएनए एक है. जो भी हिंदुस्तान मे रहता है,वह हिंदू है जैसी बातें बोल चुके हैं।
मोहन भागवत बड़े संगठन के नेता है, बड़े पद पर है तो वह बड़ी बड़ी बातें करते हैं, ताकि उनको इतिहास में याद किया जाए तो ऐसे आदमी के रूप में याद किया जाए तो चाहता था कि देश में सब सद्भाव से रहें, आपस में मंदिर-मस्जिद को लेकर कोई विवाद न करें।आरएसएस के सौ वां साल चल रहा है, आरएसएस को १९२५ में १०० साल पूरे हो जाएंगे। आरएसएस में सरसंघ चालक तो कई हुए हैं लेकिन उनमें ऐसे कम होंगे जिनको उनके काम व बयान के लिए याद किया जाएगा। क्योंकि आरएसएस की छबि इस देश में कट्टर हिंदूवादी संगठन की बना दी गई है यानी वह देश में हिंदू व मुसलमानों के बीच नफरत फैलाने वाला संगटन है।
हो सकता है कि सरसंघ चालक मोहन भागवत संगठन की छबि को अब बदलना चाहते हों।अपनी छबि को उदारवादी नेता की छबि बनाना चाहते हों। इसलिए इस तरह का बयान दिया हो।उनके इस तरह के बयान को न तो पहले हिंदू समाज ने पसंद किया था और न ही आज हिंदू समाज पसंद करने वाला है।क्योंकि हिंदू समाज ने देखा है कि उदार होकर उसको खोना पड़ा है, उपेक्षा झेलनी पड़ी है, अपमान, अन्याय झेलना पड़ा है,अब हिंदू समाज उदार नहीं समझदार हो गया है, वह जानता है कि उसके भले के लिए कौन काम कर रहा है।उसकी विरासत बचाने के लिए कौन क्या कर रहा है।उसको मजबूत करने के लिए काैन क्या कर रहा है।उसको एकजुट करने के लिए कौन क्या कर रहा है।
हिंदू समाज को आज बड़ी बड़ी आदर्शवादी बातें करने वाले नेताओं का जरूरत नही है, गंगा जमुनी तहजीब की बातें करने वाले नेताओं की जरूरत नहीं है। उसे जमीनी हकीकत की बात करने नेता पसंद हैं जो जमीनी हकीकत से उसको अवगत कराते हैै और उसी के आधार पर हिदू समाज के हित में फैसला करते हैं। देश को आज पीएम मोदी,शाह,योगी जैसे हकीकत पसंद नेताओं की जरूरत है।जनता यह बात जानती है, इसलिए वह सत्ता में है और देश व हिंदू समाज के हित में काम कर रहे हैं।