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अडानी के बाद सेवी क्यों है निशाने पर

दीपेश निषाद

ऐसी कंपनी पर कोई कैसे भरोसा कर सकता है,जिसका काम संदेहास्पद रिपोर्ट जारी कर किसी नामी कंपनी की साख, किसी संस्था के चेयरपरसन की विश्वसनीयता पर शक पैदा करना हो। हमारे देश में कुछ लोग अपने राजनीतिक स्वार्थ के कारण वही करते हैं जो शार्ट सेलिंग कंपनी अपने आका के इशारे पर भारत को नुकसान पहुंचाने के लिए करती है। हिंडनबर्ग कंपनी के मकसद को हमारे देश के राजनीतिक दलों के नेता समझते नहीं है या जानबूझकर समझना नहीं चाहते हैं। वह सोचते हैं कि यह कंपनी तो उनके टारगेट को टारगेट कर रही है, इससे तो उनके आरोपों को ही बल मिलता है।

हकीकत में हिडनबर्ग कंपनी अमरीका जैसे देश का ऐसा टूल है जिसका इस्तेमाल वह भारत में राजनीतिक व आर्थिक अराजकता फैलाने के लिए करता है। पहले उसने अडानी को नुकसान पहुंचाने के लिए संदेहास्पद रिपोर्ट जारी की थी और भारत व अडानी के कंपनी के हमले के लिए तैयार नहीं होने के कारण वह अडानी व भारत के लोगों को नुकसान पहुंचा कर खुद करोड़ो रुपए का मुनाफा कमाया था।हिंडनबर्ग कंपनी ने इस बार अडानी को नहीं सेवी के चेयरपरसन को अपना टारगेट बनाया है तो सवाल उठना स्वाभाविक है कि उसने ऐसा क्यों किया है।हकीकत यह है कि उसके पास अडानी के खिलाफ कुछ भी नया नहीं है, वही पुरानी बातें हैं,जिसे सेवी ने नकार दिया और अडानी ग्रुप को क्लीन चिट दे दी थी और कंपनी को कारण बताओं नोटिस जारी किया और पक्षपातपूर्ण शार्ट सेलिंग के मकसद से जारी रिपोर्ट को लेकर जवाब मांगा था।

हिंडनबर्ग कंपनी सच्ची होती तो वह सेवी के कारण बताओं नोटिस का जवाब देती,उसने ऐसा नहीं किया और सेवी के चेयरपर्सन पर एक रिपोर्ट जारी कर उनकी विश्वसीनीयता पर सवालिया निशान लगाने का प्रयास किया।इससे हुआ यह है कि हिंडनबर्ग कंपनी की विश्वसनीयता पर ही सवालिया निशान लग गया है।यही वजह है कि जवाब में अडानी ग्रुप के खिलाफ कोई नया सबूत पेश करने की जगह सेवी को ही सवालों के कठघरे में खड़ा करने का प्रयास किया है, हिंडनबर्ग की रिपोर्ट का इस बार भारत मे कोई खास असर नही हुआ। सुबह शेयर बाजार में गिरावट के बाद बाजार कुछ देर में ही संभल गया। क्योंकि हिंडनबर्ग ने इस बार जिस पर आरोप लगाया है, उसने तो साफ कह दिया है कि हिंडनबर्ग जो आज बता रहा है, वह तो पहले ही सरकार को बता चुकी हैं। यानी हिंडनबर्ग पुरानी बात को उजाकर भारत मे बवाल पैदा करने को सोच रहा था, वैसा कुछ नहीं हुआ तो इसलिए कि बवाल होने का चांस ही नही था।

रिपोर्ट में भी बवाल होने लायक कुछ नही था।सेवी की चेयरपर्सन व अडानी ग्रुप की तरफ से भी सही समय पर रिपोर्ट पर बयान जारी कर दिया गया, इसका असर यह हुआ कि पिछली बार की तरह हिंडनबर्ग की रिपोर्ट से शेयर बाजार को कोई खास नुकसान नहीं हुआ। विपक्ष जरूर हमेशा की तरह उत्साहित हो गया कि उसे अडा़नी के खिलाफ कोई बड़ा मुद्दा मिल गया है।कांग्रेस ने तो हमेशा की तरह इसे अडानी का महाघोटाला बताकर जेपीसी से जांच कराने की मांग कर दी। कांग्रेस भी जानती है कि अगर हिंडनबर्ग के पास अडानी के खिलाफ कोई दस्तावेजी सबूत होता तो वह यह रिपोर्ट माधवी बुच के खिलाफ नहीं अडानी के खिलाफ जारी करता। हिंडनबर्क ने अडानी की जगह माधवी बुच पर हमला किया है तो साफ है कि वह बचाव की मुद्रा में है, अपनी साख बचाने के लिए वह सेवी चेयरपरसन की साख पर शक पैदा करना चाहता है।

यह शक पैदा होता यदि सेवी चेयरपरसन ने कुछ छिपाया होता। कुछ गलत किया होता। उन्होंने इंकार किया होता कि हिंडनबर्ग ने जो बताया वह गलत है। हिंडनबर्ग की रिपोर्ट इस बार धमाका करने की बजाय फुस्स हो गई है।राहुल गांधी व कांग्रेस को फिर निराशा होगी कि वह मोदी सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार का एक ठोस मामला तक नहीं तलाश कर पा रहे हैं। ऐसे में तो जनता यही मानेगी कि इस मामले में वह विदेशी ताकतों का मोहरा बन कर रह गए हैं।इससे राहुल गांधी व कांग्रेस की साख कम होती है। राफेल, हिडनबर्ग,पेगासस हर मामले में कांग्रेस नेता झूठे साबित हुए हैं क्योंकि वह बिना सोच समझे ही विदेशी कंपनी की रिपोर्ट व खबर पर यकीन कर लेते हैं। वह सोचते तक नहीं है कि इस विदेशी कंपनी का मकसद कहीं देश को नुकसान पहुंचाना तो नहीं है।

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