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सत्ता के साथ अहंकार भी आता है…

- दीपेश निषाद

देश के राज्यों में विधानसभा के चुनाव होते रहते हैं, किसी न किसी राजनीतिक दल को जनता सत्ता सौंपती है। सत्ता अपने आप में बड़ी जिम्मेदारी होती है। जनता के प्रति जिम्मेदारी।

इस जिम्मेदारी को वही निबाह सकता है जिसको सत्ता का पद का अहंकार नहीं होता है।सत्ता की सबसे बड़ी बुराई यह होती है कि इसके मिलते ही राजनीतिक दल और उसके ज्यादातर नेताओं को अहंकार हो जाता है कि हम अब सामान्य दल नहीं है, हम अब सामान्य लोग नहीं है, हम तो खास हो गए है।

हमारे साथ जनता को खास व्यवहार करना चाहिए, पार्टी के लोगों को खास व्यवहार करना चाहिए। वह चाहते हैं कि सब हमारा सम्मान करें लेकिन वह किसी का सम्मान नहीं करते हैं।

सत्ता मिलते ही बहुत सारे लोग भूल जाते हैं कि उनको सत्ता जनता ने सौंपी, वह भूल जाते हैं कि सत्ता उनको मिली है तो पार्टी के कार्यकर्ताओं की कड़ी मेहनत के कारण। वह जनता से अच्छा व्यवहार नहीं करते हैं,. वह कार्यकर्ताओं से अच्छा व्यवहार नहीं करते हैं।

पार्टी के बड़े व अनुभवी लोग होते हैं, वह इस बात को जानते हैं।सत्ता का नशा ही ऐसा होता है कि आदमी को लगता है कि वह सबसे बड़ा है और वह सबका अपमान करता है।अपने क्षेत्र की जनता और अपनी पार्टी के कार्यकर्ताओं का अपमान करता है।पार्टी के कार्यकर्ता तो उसकी शिकायत पार्टी की बैठकों में करते हैं लेकिन आम जनता किसी से शिकायत नहीं करती है।

वह अगले चुनाव में विधायक,मंत्री के साथ ही राजनीतिक दल को हराकर सबक देती है कि जो जनता का सम्मान नहीं करता है जनता भी उसे अपना जनप्रतिनिधि नहीं चुनती है।

भाजपा के वरिष्ठ नेता अपने अनुभव से यह बात जानते हैं,इसलिए भाजपा अपने विधायकों व सांसदों व नेताओं जब भी मौका मिलता है कि इस बात का एहसास दिलाती है कि उसके लिए पार्टी व जनता का सम्मान करना सबसे ज्यादा जरूरी है।पार्टी उसे विधायक,सांसद बनने का मौका देती है और जनता उसे विधायक व सांसद बनाती है।

यही वजह है कि मैनपाट के प्रशिक्षण शिविर में भाजपा के वरिष्ठ नेताओं ने नए व पुराने विधायकों, सासंदों को यह सीख दी है कि जनता व कार्यकर्ताओं के साथ उनका व्यवहार अच्छा होना चाहिए। दोनों से अच्छा व्यवहार नहीं करने का परिणाम विधायक. सांसद की हार तो होती ही है, भाजपा की भी हार होती है।

सांसद,विधायक की बदनामी तो होती ही है,पार्टी की छबि भी खराब होती है। मैनपाट के तीन दिन के १२ सत्रों में भाजपा विधायकों व सांसदों को लोक व्यवहार, समय प्रबंधन,व्यक्तित्व कौशल विकास के टिप्स भी दिए गए हैं। राज्य सरकार के लिए तीन साल की कार्ययोजना भी बनाई गई है।सीएम साय ने कहा है कि मैैनपाट प्रशिक्षण विधायकों,सांसदों के दायित्व निर्वहन में सहायक सिध्द होगा तो उम्मीद की जा सकती है ऐसा जरूर होगा।

भाजपा की कार्यपध्दति में प्रशिक्षण व अभ्यास की परंपरा है। जब मौका मिलता है नेताओं को प्रशिक्षण दिया जाता है और उसका अभ्यास करने को कहा जाता है इससे विधायकों व सांसदों को दायित्व निभाने में मदद मिलती है।वह अपनी कार्यशैली को और प्रभावी बना पाते हैं, जनता के सेवा और अच्छे से कर पाते हैं।

भाजपा को मालूम है कि वह अपने नेताओं में सामूहिकता की भावना कैसे पैदा कर सकती है, संगठनात्मक समरसता कैस ला सकती है। इसलिए वह ऐसे आयोजन करती है जिसमें सभी एक साथ कुछ दिन रहते हैं, एक दूसरे को समझते हैं। पार्टी के प्रति परिवारबोध गहरा होता है।सबको एहसास दिलाया जाता है कि हमारी पार्टी एक परिवार है। हम सब इस परिवार के हैं, हमें इस परिवार को एकजुट व मजबूत बनाए रखना है।

माना जाता है कि कांग्रेस व भाजपा में यही मूल अंतर है कि भाजपा के लोग पार्टी को एक परिवार समझते हैं और कांग्रेस के लोग पार्टी को किसी परिवार की प्रापर्टी मानते है। इसलिए भाजपा में वह होता है जो पार्टी चाहती है, कांग्रेस में वही होता है जो परिवार चाहता है।कांग्रेस में परिवार चुनाव नहीं जिता पाता है तो पार्टी कमजोर हो जाती है लेकिन भाजपा में पार्टी चुनाव जिताती है, इसलिए पार्टी मजबूत होती जाती है।

आज कांग्रेस कमजोर है तो परिवार के कारण,कमजोर है तो भ्रष्ट नेताओं के कारण,जनता का ख्याल नहीं रखने वाले नेताओं के कारण और भाजपा मजबूत है तो पार्टी के कारण अपने ईमानदार नेताओं के कारण,जनसेवी नेताओं के कारण। जनता का ख्याल रखने वाले नेताओं के कारण।

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