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रोते कैलेंडर को हंसाएं

(नववर्ष चिंतन आलेख)

नये वर्ष के आगमन की खुशी में पुराने वर्ष की आखरी रात में लोग झूम रहे थे, पर मैं चूंकि अपने नये वर्ष की शुरूआत हिन्दू पंचांग के मुताबिक चैत्र के माह को मानता हूं, अतः इन सबसे दूर था। बिस्तर पर जल्दी ही लुढ़क गया था, किन्तु नये वर्ष के ढोल ढमाक से मेरी नींद उचट गई थी। तभी किसी के सिसकने की आवाज सुनकर मैं उस दिशा में चल पड़ा जहां से सिसकने की आवाज आ रही थी।

आगे जाकर मैंने देखा कि कील में टंगा कैलेंडर फड़फड़ाते हुए सिसक रहा है। मैंने पूछा- भाई कैलेंडर कलप कलप कर क्यों रो रहे हो?

मेरे इस सवाल पर कैलेंडर आंसू पोंछते हुए बोला-अजीब आदमी हो, क्या तुम्हें मालूम नहीं कि आज मेरी जिंदगी की आखरी रात है। कल मेरी जगह नया कैलेंडर टंग जायेगा और मैं कचरे की तरह फेंक दिया जाउंगा।

अच्छा…… तो तुम्हें इसी बात का दुःख है कि अब तुम्हें कोई पूछेगा नहीं। अरे भाई कैलेंडर तुम्हें तो खुश होना चाहिये क्यों कि कल सुबह नये वर्ष पर तुम्हारे छोटे भाई अर्थात् नये कैलेंडर को तुम्हारी जगह सुशोभित होने का अवसर मिलेगा।

मेरी बात से कैलेंडर गुस्से में फड़फड़ा उठा और बोला- आदमी की जात सिर्फ अपने स्वार्थों, को पहले देखते हो तभी तो मेरे लिए भी ऐसी घटिया सोच तुम्हारी बन गई हैं। कान खोल कर सुनो,मैं इसलिए नहीं रो रहा हूं कि कल मेरी जगह नया कैलेंडर आ जायेगा। मैं तो ये सोच-सोच कर रो रहा हूं कि बारह महीने मैं तुम लोगों को होली, दीपावली, ईद, क्रिसमस जैसे अनेक त्योंहारों की तारीख की सूचना देते आपसी भाईचारा को बढ़ाने, पर्यावरण संरक्षण हेतु पेड़-पौधा लगाने, पानी बचाने, नशापान से दूर रहने का संदेश देता रहा पर तुम लोगों ने मेरी बातों की परवाह नहीं की।

क्या बात कर रहे हैं कैलेंडर भाई ? आपके बताये पर्वों के मुताबिक वर्ष भर हमनें तो अलग अलग त्यौहारों का मजा लिया। भला हमारे त्यौहार मनाने में तुम्हें क्या कमी, क्या खोट दिखा ,जो कि इतना गुस्सा कर रहे हो ?

मेरे इस सवाल से कैलेण्डर आगबबुला हो उठा वह बोला- आग लगे तुम लोगों के त्यौहार मनाने के ढंग में।बारहों महिना त्यौहारों की आड़ में लड़ते-झगड़ते,नशा शराबखोरी में डूबे रहे। ।वर्ष भर हरेक दिन की महिमा को बताते-बताते मैं पानी में डूबे मिट्टी के डल्ले की तरह घुलता रहा, पर तुम नहीं सुधरे।कुत्ते की पूंछ की तरह टेढ़े के टेढ़े रह गये।

कैलेंडर एक गहरी सांस लेने के बाद फिर बोला-मुझे तो मालूम था कि एक जनवरी को मेरा जन्म हुआ और इकतीस दिसम्बर की रात मेरी जिंदगी की आखरी रात होंगी, पर तुम लोगों को तो इस बात का जरा भी ज्ञान नहीं होता कि तुम्हारी जिंदगी का दीपक कब बुझ जायेगा ? इसीलिए समझा रहा हूं कि नये वर्ष में अच्छे अच्छे काम करना। मैं और मेरा के चक्कर में पड़ने के बजाय हम और हमारे के भाव को लिये हुए प्रेम की डोर में बंध जाना। रूपया-पैसा, पद-प्रतिष्ठा के घमंड में अकड़े मत रहना,नहीं तो कोई नाम लेने वाला भी नहीं बचेगा।

तब मैंने उसे लिपटाते हुए कहा- कैलेंडर भईया,आप भरोसा रखो नये वर्ष के कैलेंडर की जिंदगी को हम व्यर्थ जाने नहीं देंगे।यह सुन कर कैलेंडर के चेहरे पर खुशी के भाव उभर आये। वह मां की गोद में किलकारी भरते बच्चे की भांति आंखे बंद कर सो गया। मैं भी नई सुबह नई दुनिया में जागने का संकल्प लिए बिस्तर पर लुढ़क गया।

विजय मिश्रा ‘अमित’

वरिष्ठ हिंदी-लोकरंगकर्मी

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One Comment

  1. Insightful and well-written! Your points are thought-provoking. For those wanting to learn more about this topic, here’s a great resource: FIND OUT MORE. Interested in hearing everyone’s perspective!

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