बिहार की सियासत गरमा गई है जहर का हर घूंट पीते रहे लालू लेकिन रंग दिखा गए नीतीश?
बिहार :– बिहार की राजनीति एक बार फिर से नई करवट लेती नजर आ रही है. सीएम नीतीश कुमार ने अगस्त 2022 में बीजेपी से गठबंधन तोड़कर दोबारा से महागठबंधन का हिस्सा बने. आरजेडी सबसे बड़ी पार्टी होने के बाद भी नीतीश कुमार को सीएम की कुर्सी सौंपी और तेजस्वी यादव को डिप्टी सीएम के पद से संतोष करना पड़ा था. पिछले डेढ़ साल के कार्यकाल में लालू परिवार के करीबी आरजेडी नेता और मंत्री नीतीश कुमार के निशाने पर रहे. आरजेडी कोटे के जिस भी मंत्री पर नीतीश ने एतराज जताया, लालू यादव ने उसकी छुट्टी कर दी ताकि सरकार बची रहे
लालू यादव ने अपने मंत्रियों को हटाया, कई मंत्रियों के विभाग बदले और किसी मंत्री के कार्य पर नीतीश ने उंगली उठाई तो उस पर कार्रवाई करने में देर नहीं की. इस तरह से गठबंधन धर्म या फिर तेजस्वी यादव की कुर्सी को बचाए रखने के लिए लालू यादव डेढ़ साल तक जहर का हर घूंट पीते रहे. लेकिन, जेडीयू प्रमुख नीतीश कुमार आखिरकार पलटी मारने की तैयारी कर ली है. लोकसभा चुनाव से ठीक पहले नीतीश कुमार महागठबंधन का नाता तोड़कर फिर से एनडीए के साथ जाने की तैयारी कर ली है. इस तरह लालू यादव की सारी कोशिशें फेल होती दिख रही हैं?
नीतीश कुमार ने लालू यादव के साथ सियासी सफर शुरू किया और एक ही सियासी पाठशाला से निकले. बिहार की राजनीति में लालू ने खुद को नीतीश से पहले स्थापित कर लिया था. लालू यादव के 1990 में सीएम बनने के बाद नीतीश कुमार की राजनीतिक महत्वाकांक्षा बढ़ गई और 1994 में अपनी अलग पार्टी बना ली. इसके बाद सीएम बनने के लिए उन्हें दस साल का समय लग गया. 2005 में नीतीश कुमार बिहार के सीएम बने और उसके बाद से प्रदेश की राजनीति के धुरी बने हुए हैं. नीतीश के सियासी उभार के साथ ही लालू की राजनीति कम होती गई.
नीतीश के बीजेपी से अलग होने के बाद लालू बने सहारा
नीतीश कुमार 2013 में बीजेपी से अलग हुए तो लालू यादव ही सियासी सहारा बने. इसके पीछे लालू का सियासी मकसद था, वो अपने बेटे तेजस्वी यादव को स्थापित करना चाहते थे. 2015 में लालू यादव की सियासी ख्वाहिश काफी हद तक पूरी हुई, जब उन्होंने अपने बेटे तेजस्वी को डिप्टी सीएम बनाने में सफल रहे. आरजेडी का सियासी उभार फिर शुरू हुआ, लेकिन 2017 में नीतीश के एनडीए में जाने और लालू यादव के जेल जाने के चलते आरजेडी की सियासत मझधार में फंस गई. इसके बाद 2022 में फिर से बिहार की सियासत ने करवट ली. आरजेडी और जेडीयू ने मिलकर सरकार बनाई, कांग्रेस सत्ता में हिस्सेदार बनी, लेकिन लेफ्ट ने बाहर से समर्थन दिया.2017 में सियासी धोखा खाने के बाद लालू यादव किसी भी सूरत में नीतीश कुमार को इस बार नाराज नहीं करना चाहते थे. नीतीश कुमार ने आरजेडी के साथ भले ही सरकार बना ली थी, लेकिन उनका आरजेडी नेताओं से तालमेल नहीं बैठ पा रहा था. यही वजह है कि महागठबंधन में आए दिन सियासी टकराव की खबरें आती रहती हैं. आरजेडी के जो भी नेता नीतीश कुमार की आंख में खटका, उसे लालू यादव ने किनारे लगाने में देर नहीं की. इसके लिए लालू यादव ने अपने कई करीबी नेताओं पर भी एक्शन लेने से परहेज नहीं किया.
अधिकारियों की ट्रांसफर पोस्टिंग पर भी चुप रहे लालू
राजस्व और भूमि सुधार मंत्री आलोक मेहता की तरफ से 480 अधिकारियों की ट्रांसफर पोस्टिंग किया, जिस पर जेडीयू ने एतराज जताया था. सीएम नीतीश ने उसे रद्द कर दिया, लालू यादव और आरजेडी की तरफ से कोई भी टिप्पणी नहीं की गई. आलोक मेहता आरजेडी के उन चंद नेताओं में शामिल हैं, जिन्हें पार्टी प्रमुख लालू यादव और डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव का करीबी माना जाता है. बिहार में महागठबंधन की सरकार बनी तो आरजेडी के बिहार प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह के बेटे सुधाकर सिंह मंत्री बने थे. जगदानंद सिंह आरजेडी प्रमुख लालू यादव के करीबी नेताओं में हैं और तेजस्वी यादव के साथ भी उनके रिश्ते काफी अच्छे हैं. इसके बावजूद सुधाकर सिंह को नीतीश कुमार से पंगा लेना महंगा पड़ा था और मंत्री पद से इस्तीफा भी देना पड़ा था. सुधाकर सिंह ने बिहार में किसानों के मुद्दे पर नीतीश कुमार पर सवाल खड़े कर दिए थे और लगातार मोर्चा खोले हुए थे. इसके चलते नीतीश कुमार ने आरजेडी सुप्रीमो को साफ-साफ शब्दों में सुधाकर सिंह को मंत्री पद से हटाने का दबाव बनाया था, जिसके बाद आरजेडी की तरफ से चिट्ठी जारी करके मंत्री पद से इस्तीफा देने के लिए कहा था.
महागठबंधन की सरकार बनते ही कार्तिक सिंह पर गिरी थी गाज
बिहार में महागठबंधन की सरकार बनते ही सबसे पहले किसी नेता पर नीतीश कुमार की गाज गिरी थी तो वो आरजेडी कोटे से कानून मंत्री रहे कार्तिक सिंह थे. अपहरण के एक मामले में कथित संलिप्तता के चलते कार्तिक सिंह का पहले विभाग बदला गया. कानून मंत्रालय की जगह गन्ना उद्योग विभाग आवंटित कर दिया गया. 20 दिन ही बाद ही उन्होंने मंत्री पद से इस्तीफा भी दे दिया. लालू यादव परिवार के करीबी नेताओं में आरजेडी एमएलसी सुनील सिंह का नाम आता है. पिछले दिनों नीतीश कुमार ने महागठबंधन की बैठक में सुनील सिंह को निशाने पर लिया था. महागठबंधन के विधायक दल की बैठक में सुनील सिंह ने जेडीयू कोटे के मंत्री अशोक चौधरी के बीच भी बहस हुई थी. सुनील सिंह ने चौधरी को दलबदलू बताते हुए नीतीश को भी धोखा देने की बात कही थी इस पर सीएम नीतीश कुमार ने कहा कि दिल्ली में आप अमित शाह से मिलते हैं और बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ना चाहते हैं. उन्होंने कहा कि लालू परिवार के आप (सुनील सिंह) करीबी हैं, यह सब मत करिए. इसके बाद से सुनील सिंह को लालू यादव ने साइडलाइन कर दिया.
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